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५०/तीर्थंकर चरित्र
राजा को विशिष्ट कर्म- निर्जरा हुई एवं अपूर्व पुण्य का बधं हुआ। ___अगले वर्ष बारिस हुई। अच्छी फसल होने से सर्वत्र अमन छा गया। पूर्ववत् सारी व्यवस्थाएं चालू हो गई। राजकीय सहायता केन्द्र जरूरत के अभाव में बन्द कर दिए गए, किन्तु राजा के प्रति निष्ठा के भाव प्रजा में स्थायी रूप से जम गए। तीर्थंकर गोत्र का बन्ध
एक बार राजा विपुलवाहन ने बादलों की घनघोर घटा को हवा के साथ उमड़ते व बिखरते देखा । राजा को संसार व परिवार का स्वरूप भी ऐसे ही छिन्न- भिन्न होने वाला लगा। वे भौतिक जीवन से विरक्त हो गए, और स्वयंप्रभ आचार्य के पास दीक्षित होकर अध्यात्म में लीन हो गए। मुनि विपुलवाहन ने अपनी उदात्त भावना के द्वारा कर्म निर्जरा के बीस विशेष स्थानों की साधना की । अशुभ कर्मों की निर्जरा के साथ तीर्थंकर नाम कर्म जैसी शुभ पुण्य -प्रकृति का बंध किया। अन्त में समाधिपूर्वक आराधक पद पाकर नौंवे देवलोक में देव बने । तिलोयपन्नत्ति आदि ग्रंथों में विपुलवाहन ग्रैवेयक में गए, ऐसा उल्लेख है। जन्म ___ सुखमय देवायु को पूर्णतः भोग लेने के बाद उनका वहां से च्यवन हुआ । भरत क्षेत्र में सावत्थी नगरी के राजा जितारि की पटरानी सेनादेवी की कुक्षि में वे अवतरित हुए। रात्रि में सेनादेवी को तीर्थंकरत्व के सूचक चौदह महास्वप्न आए। रानी ने सम्राट् जितारि को जगाकर स्वप्न बतलाए। हर्षोन्मत्त राजा ने रानी से कहा- कोई भुवन- भास्कर अपने घर में आया है। ये स्वप्न उसी के सूचक हैं। अब तुम नींद मत लो, धर्म- जागरण करो। सवेरे मैं स्वप्नशास्त्रियों से पूछकर इसका विस्तृत ब्यौरा बताऊंगा।
सवेरे राजा ने स्वप्न- पाठकों को बुलाया। आसन आदि देकर उनका सम्मान किया। उन्हें रानी को आए हुए चौदह महास्वप्नों का विवरण सुनाया और उनके फलाफल के बारे में जिज्ञासा की। उन्होंने स्वप्न-शास्त्रों व अपने अध्ययन के आधार पर एक मत से यह निर्णय सुनाया कि रानीजी की कुक्षि से पुत्र रत्न पैदा होगा, लाखों व्यक्तियों को उनसे त्राण मिलेगा। राजन्! आपका नाम इस पुत्र के कारण अमर हो जाएगा। स्वप्न पाठकों की बात से राजमहल सहित सारे जनपद में खुशी की लहर फैल गई।
गर्भकाल पूरा होने पर महारानी सेनादेवी ने मिगसर शुक्ला चतुर्दशी की मध्य-रात्रि में बालक को जन्म दिया। सर्वप्रथम इन्द्रों ने जन्मोत्सव किया। बाद में राजा जितारि और सावत्थी जनपद के भावुक लोगों ने जन्मोत्सव मनाया। ग्यारह दिनों तक राजकीय उत्सव चला।