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भगवान् श्री सुमतिनाथ/५९
स्वर्ग में वैजयंत नामक विमान में देव रूप में पैदा हुए। जन्म
वैजयंत विमान की भव- स्थिति पूर्ण कर भगवान् सुमतिनाथ की आत्मा ने अयोध्या सम्राट् मेघ की महारानी मंगलावती की कुक्षि में अवतरण लिया । मंगलावती ने चौदह महास्वप्न देखे । स्वप्न पाठकों ने स्वप्नों के अनुसार घोषित किया कि महारानी की कुक्षि से तीर्थंकर देव जन्म लेंगे। महारानी मंगलावती स्वप्नफल सुनकर धन्य हो गई। राजा मेघ भी महारानी को अधिक सम्मान देने लगे।
गर्भकाल पूरा होने पर वैशाख शुक्ला अष्टमी की मध्यरात्रि में प्रभु का जन्म हुआ। चौसठ इंद्रों ने मिलकर उनका पवित्र जन्मोत्सव किया। महाराज मेघ ने जन्मोत्सव में याचकों को जी भर दान दिया। सारे राज्य में पुत्र- जन्म पर राजकीय उत्सव मनाया गया। नामकरण
नामकरण के अवसर पर राजा ने विशाल आयोजन किया। शहर के हर वर्ग के लोग आयोजन में उपस्थित थे। नाम के बारे में चर्चा चलने पर अनेक सुझाव आये।
राजा मेघ ने कहा- 'यह बालक जब गर्भ में था, तब महारानी की बौद्धिक क्षमता असाधारण रूप से बढ़ गई थी। महारानी समस्याओं का सुलझाव तत्काल एवं अप्रतिहत रूप में किया करती थी। राजकीय मामलों को हल करने की उसमें विशेष दक्षता आ गई थी। इसी क्रम में महाराज मेघ ने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा- 'कुछ महिनों पहले मेरे सामने एक ऐसा विवाद उपस्थित हुआ, जिसका निर्णय करना मेरे लिए कठिन हो गया था। एक साहूकार के दो पत्नियां थीं। एक के एक पुत्र था, दूसरी के कोई संतान नहीं थी। दोनों के परस्पर प्रेम होने के कारण पुत्र का लालन- पालन दोनों समान रूप से किया करती थी। अकस्मात् पति के गुजर जाने से संपत्ति के अधिकार के लिये दोनों झगड़ने लगी। पुत्र पर भी दोनों अपना- अपना अधिकार जताने लगीं। नादान बच्चा दोनों को मां कहकर पुकारता था। उसके लिये यह निर्णय करना कठिन था कि असली मां कौन- सी है? नगर- पंचों के माध्यम से यह विवाद मेरे समक्ष लाया गया। कहीं दूर अंचल में वह बालक उत्पन्न हुआ था, अतः नगर में इस विषय में किसी को भी प्रामाणिक जानकारी नहीं थी। मैंने बहुत प्रयत्न किया कि असली माता का पता लग जाए, किन्तु मैं असफल रहा। इसी उलझन से ग्रसित होने से एक दिन मुझे भोजन में देरी हो गई। तत्काल महारानी ने कहलवाया कि महिलाओं का विवाद तो हम निपटायेंगे, आप तो भोजन लीजिये । मैं उलझा हुआ था ही, रानी को अधिकार देकर तुरन्त ऊपर चला गया।