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६०/ तीर्थंकर चरित्र
रानी ने विवाद की सामान्य पूछताछ करने के बाद उन माताओं से कहा'मेरे मस्तिष्क में एक हल सूझा है । पुत्र की तुम दोनों दावेदार हो । पुत्र एक है, तुम दो हो, इसलिए क्यों नहीं इस बालक के दो टुकड़े करवा दिए जाए, ताकि आधा आधा हिस्सा दोनों को मिल जाएगा, तुम्हें यह स्वीकार है?"
रानी की कठोर मुद्रा को देखकर प्रपंच रचने वाली महिला ने सोचा- 'मेरा क्या जाएगा, बालक तो मेरा है नहीं, मर जाएगा तो जैसी मैं हूं वैसी यह भी हो जाएगी।' ऐसा विचार कर उसने तुरन्त 'हां' कह दी।
यह बात सुनते ही पुत्र की असली माता का हृदय फटने लगा। उसने सोचा'पुत्र मर जाएगा तो बहुत बुरा होगा। इससे तो अच्छा है कि वह विमाता के पास ही रह जाए, मैं दूर से उसे देखकर ही संतोष कर लूंगी।' यह सोचकर उसने कांपते हुए स्वरों में कहा- 'नहीं, नहीं, महारानीजी ! मैं ही झूठी हूं, पुत्र इसका ही है। अतः मरवाइये मत, इसे दे दीजिए, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।'
सुनने वाले दंग रह गए। सोचने लगे, यह झूठी थी फिर भी विवाद बढ़ा रही थी। सुनते ही रानी ने निर्णय सुनाया - 'पुत्र उसका नहीं, इसका ही है जो यह कह रही है कि मैं झूठी हूं। यही असली माता है। मातृ- हृदय को मैं जानती