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भगवान् श्री ऋषभदेव/२५
ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति सम्राट् भरत के शासनकाल में हुई। सम्राट् भरत ने धर्म के सतत जागरण के लिए कुछ बुद्धिजीवी व्यक्तियों को चुना जो वक्तृत्व कला में निपुण थे। ब्रह्मचारी रहकर समय-समय पर राज्य सभा में तथा अन्य स्थानों में प्रवचन देना, लोगों को धार्मिक प्रेरणा देना उनका काम था। सम्राट् भरत ने उन्हें आजीविका की चिन्ता से मुक्त कर दिया। उन्हें महलों से भोजन मिल जाया करता था। गांवों में लोग उन्हें अपने घरों पर भोजन करवा देते थे या भोजन सामग्री दे देते थे। ब्रह्मचर्य का पालन करने से या ब्रह्म (आत्मा) की चर्चा में लीन रहने के कारण उन्हें ब्राह्मण कहा जाता था। इनकी संख्या सीमित थी और भरत द्वारा निर्धारित थी। तीन रेखाएं (जनेऊ)
चालू व्यवस्था का कोई अनुचित लाभ न उठा ले, इसलिए भरत समुचित परीक्षण के बाद ब्राह्मणों की छाती पर अपने कांगणी रत्न से तीन रेखाएं खींच देते थे। ये रेखाएं उनकी पहचान थी। लोग इसे देखकर ही निमंत्रण आदि दिया करते थे। भरत के बाद जब आदित्यजश राजा बना तो हर ब्राह्मण को पहचानने के लिए विशेष प्रकार से बना स्वर्ण-सूत्र देना प्रारम्भ किया। आगे चलकर यही धागे की “जनेऊ" बन गई थी। प्रारम्भ में ये लोग ब्रह्मचारी थे। साधु और गृहस्थ के बीच की भूमिका निभाते थे। यह क्रम लम्बे समय तक चला।
इस प्रकार चारों वर्ग (वर्ण) की उत्पत्ति ऋषभ और सम्राट् भरत के समय में हो गई थी, किन्तु हीनता और उच्चता की भावना उस समय बिल्कुल नहीं थी। सभी अपने-अपने कार्य से सन्तुष्ट थे। वर्ण के नाम पर हीन-उच्च या स्पृश्यास्पृश्य आदि भाव नहीं थे। ये सब बाद के विकार है, निहित स्वार्थों के द्वारा मानव समाज पर थोपी गई कुत्सित अहंकार की भावनाएं हैं। विवाह
ऋषभ ने काम-भावना पर नियंत्रण रखने की दृष्टि से शादी की व्यवस्था प्रचलित की। शादी से पहले का जीवन सर्वथा निर्विकार बनाये रखना अनिवार्य घोषित किया उन्होंने ऐसा करके वासनाजन्य उन्माद को नियन्त्रित कर दिया। लोग पत्नी के अतिरिक्त अन्य सभी के साथ निर्विकार सम्बन्ध रखने के आदी हो गये। इसके अतिरिक्त बहिन के साथ शादी भी वर्जित कर दी गयी। भाई-बहिन का पवित्र सम्बन्ध जो हम आज देख रहे हैं वह भगवान् ऋषभ की देन है। ग्राम व्यवस्था
ऋषभ ने सामूहिक जीवन का सूत्रपात करते हुए सबसे पहले ग्राम व्यवस्था की रूपरेखा लोगों को समझाई। उन्होंने बताया- अब समय बदल चुका है, रहन-सहन में परिवर्तन करो। अब तक वृक्षों के नीचे रहा करते, ऋतुएं अनुकूल