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भगवान् श्री ऋषभदेव/१९
एक बार उधर से मरुदेवा माता घूमने को निकली। उन्होंने लड़की को अकेली देखकर पूछा- 'तुम्हारा साथी कहाँ गया?' लड़की ने सारी आपबीती सुनाई।
मरूदेवा ने सोचा- अकेली लड़की कैसे जीवन बितायेगी? अच्छा हो, इसे मैं घर ले जाऊं। ऋषभ के साथ यह भी खेलती रहेगी। बड़ी होने पर ऋषभ के दो पत्नियाँ हो जाएगी। इस भावना से अभिप्रेरित मरूदेवा लड़की को अपने घर ले आई। आगे चलकर यही लड़की सुमंगला के नाम से ऋषभ की दूसरी पत्नी बनी। सन्तान __ यौगलिक काल में सीमित सन्तान का नियम अटल था। हर युगल के जीवन में एक ही बार संतानोत्पत्ति होती थी और वह भी युगल के रूप में। उसमें भी एक लड़का व दूसरी लड़की होती थी। सर्वप्रथम ऋषभ के घर में यह क्रम टूटा। ऋषभ की पत्नी सुनंदा के तो एक ही युगल उत्पन्न हुआ बाहुबलि और सुन्दरी। सुमंगला के पचास युगल जन्मे; जिनमें प्रथम युगल में भरत और ब्राम्ही का जन्म हुआ, शेष उनपचास युगलों में केवल पुत्र ही पुत्र पैदा हुए। इस प्रकार अट्ठानवें पुत्र तो ये हुए और भरत बाहुबलि दोनों दो बहिनों के साथ जन्में । कुल मिलाकर ऋषभ के सौ पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। सबसे बड़ा पुत्र भरत था। इसके बाद तो अन्य युगल दम्पतियों के भी अनेक पुत्र-पुत्रियां होने लगी। तभी आगे चलकर इन सबकी शादियाँ अनेक कन्याओं से होने का उल्लेख है। जनसंख्या भी बहुत तेजी से बढ़ने लगी। भगवान् के पुत्र-पुत्रियों के नाम इस प्रकार हैं :१-भरत २-बाहुबली
३-शङ्ख ४-विश्वकर्मा ५-विमल
६-सुलक्षण ७-अमल ८-चित्रांग
९-ख्यातकीर्ति १०-वरदत्त ११-दत्त
१२-सागर १३-यशोधर १४-अवर
१५-थवर १६-कामदेव १७-ध्रुव
१८-वत्स १९-नन्द २०-सूर
२१-सुनन्द २२-कुरू २३-अंग
२४-बंग २५-कौशल २६-वीर
२७-कलिंग २८-मागध २९-विदेह
३०-संगम ३१-दशार्ण ३२-गम्भीर
३३-वसुवर्मा ३४-सुवर्मा ३५-राष्ट्र
३६-सुराष्ट्र ३७-बुद्धिकर ३८-विविधकर
३९-सुयश ४०-यशःकीर्ति ४१-यशस्कर
४२-कीर्तिकर ४३-सुषेण ४४-बह्मसेण
४५-विक्रान्त