Book Title: Tattvarthasutra Hindi
Author(s): Umaswati, Umaswami, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 8
________________ - आठ - बाद तीन ग्रन्थ लिखने की स्पष्ट कल्पना की। श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रतिदिन बढती हुई पाटगालाओ, छात्रालयो और विद्यालयों में जैन-दर्शन के शिक्षण की आवश्यक्ता जैसे-जैसे अधिक प्रतीत होने लगी वैसे-वैसे चारो ओर से दोनो सम्प्रदायो मे मान्य नई शैली के लोकभाषा मे लिखे गए जैन-दर्शन विषयक ग्रंथों की मॉग भी होने लगी। यह देखकर हमने निश्चय किया कि 'तत्त्वार्थ' और 'सन्मतितर्क' इन दोनों ग्रथों का तो विवेचन किया जाए और उसके परिणामस्वरूप तृतीय पुस्तक 'जैन पारिभाषिक शब्दकोश' स्वतन्त्र रूप से लिखी जाए। इस प्रथम कल्पना के अनुसार हम दोनों ने तत्त्वार्थ के विवेचन का काम आज से ११ वर्ष पूर्व ( सन् १९१९ में ) आगरा में प्रारम्भ किया। ___ "अपनी विशाल योजना के अनुसार हमने काम प्रारम्भ किया और इष्ट सहायको का समागम होता गया, पर वे आकर स्थिर रहे न रहे उसके पूर्व ही वे पक्षियो की तरह भिन्न-भिन्न दिशाओं में तितर-बितर हो गए और बाद मे तो आगरा के इस घोसले म अकेला मै ही रह गया । तत्त्वार्थ का आरम्भ किया गया कार्य और अन्य कार्य मेरे अकेले के बस के न थे और यह कार्य चाहे जिस तरह पूर्ण करने का निश्चय भी चुप न रहने देता था। महयोग और मित्रों का आकर्षण देखकर मै आगरा छोडकर अहमदाबाद चला गया। वहाँ मेने 'सन्मति' का कार्य हाथ मे लिया आर तत्त्वार्थ के दा-चार सूत्रो पर आगरा में जो कुछ लिखा वह ज्यों का त्यों पडा रहा। "भावनगर में सन् १९२१-२२ मे सन्मति का काम करते समय बीच-बोच मे तत्त्वार्थ के अधूरे काम का स्मरण हो आता और मै चिन्तित हो जाता। मानसिक सामग्री होने पर भी उपयुक्त इष्ट मित्रों के अभाव के कारण मैने तत्त्वार्थ के विवेचन की पूर्व निश्चित विशाल योजना दूर करके अपना उतना भार कम किया, पर इस कार्य का सकल्प ज्यो का त्यो था। इसलिए स्वास्थ्य के कारण जब मै विश्रान्ति के लिए भावनगर के पास वालु कड़ गांव गया तब फिर तत्त्वार्थ का कार्य हाथ में लिया और उसकी विशाल योजना सक्षिप्त करके मध्यममार्ग अपनाया। इस विवाति-काल में भिन्न-भिन्न जगहों मे रहकर लिखा। इस काल में लिखा तो कम गया पर उसकी एक रूपरेखा ( पद्धति ) मन में निश्चित हा गई और कभी अकेले लिखने का विश्वास उत्पन्न हुआ। “मै उन दिनो गुजरात में ही रहता था और लिखता था। पूर्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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