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द्वितीय अनुवाक
शीक्षाकी व्याख्या अर्थज्ञानप्रधानत्वादुपनिपदो! उपनिपद् अर्थज्ञानप्रधान है
[ अर्थात् अर्थज्ञान ही इसमें मुख्य ग्रन्थपाठे यलोपरमो मा भूदिति है ], अतः इस ग्रन्थके अध्ययनका
प्रयत्न शिथिल न हो जाय--इसलिये शीक्षाध्याय आरभ्यते
। पहले शीक्षाध्याय आरम्भ किया
जाता हैशीक्षां व्याख्यास्यामः। वर्णः खरः। मात्रा बलम् । साम सन्तानः । इत्युक्तः शीक्षाध्यायः ॥१॥ ___ हम शीक्षाकी व्याख्या करते हैं । [अकारादि] वर्ण, [उदात्तादि] खर, [ हखादि ] मात्रा, [शब्दोच्चारणमें प्राणका प्रयत्नरूप] बल, [एक ही नियमसे उच्चारण करनारूप ] साम तथा सन्तान (संहिता) [ये ही विषय इस अध्यायसे सीखे जानेयोग्य हैं। इस प्रकार शीक्षाध्याय कहा गया ॥१॥ शिक्षा शिक्ष्यतेऽनयेति वर्णा- जिससे वर्णादिका उच्चारण सीखा
जाय उसे 'शिक्षा' कहते हैं अथवा छुच्चारणलक्षणम् । शिक्ष्यन्त जो सीखे जायें वे वर्ण आदि ही इति वा शिक्षा वर्णादयः । शिक्षा हैं । शिक्षाको ही 'शीक्षा'
कहा गया है । [शीक्षाशब्दमें शिक्षवशीक्षा । दैयं छान्दसम्। ईकारका] दीर्घत्व वैदिक प्रक्रियाके तां शीक्षा व्याख्यास्यामो विस्प
- अनुसार है । उस शीक्षाकी हम
| व्याख्या करते हैं अर्थात् उसका टमा समन्तात्कथयिष्यामः । सर्वतोभावसे स्पष्ट वर्णन करते हैं।