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अनु०१]
शाङ्करभाष्यार्थ
स एवं ब्रह्म विजानन्किमि- वह इस प्रकार ब्रह्मको जानने
| वाला क्या करता है ? इसपर श्रुति विद त्याह-अश्नुते, भुङ्क्त कहती है-वह सम्पूर्ण अर्थात् निःऐश्वर्यन् सर्वानिरवशिष्टान्का- | शेप कामनाओं यानी इच्छित भोगोंमान्भोगानित्यर्थः। किमसदादि
र को प्राप्त कर लेता है अर्थात् उन्हें
५ भोगता है । तो क्या वह हमारेवत्पत्रस्वर्गादीन्पर्यायेण नेत्याह। तुम्हारे समान पुत्र एवं स्वर्गादि
भोगोंको क्रमसे भोगता है ? इसपर सह युगपदेकक्षणोपारूढानेव 'श्रुति कहती है-नहीं, उन्हें एक
, साथ भोगता है । वह एक ही क्षणमें एकयोपलब्ध्या सवितप्रकाशवत् वद्धिवृत्तिपर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण नित्यया ब्रह्मस्वरूपाव्यतिरिक्तया। भागाका सूयक प्रकाशक समान
नित्य तथा ब्रह्मखरूपसे अभिन्न एक यामवोचाम सत्यं ज्ञानमनन्त- ही उपलब्धिके द्वारा, जिसका हमने
'सत्यं ज्ञानमनन्तम्' ऐसा निरूपण मिति । एतत्तदुच्यते-ब्रह्मणा किया है, भोगता है। 'ब्रह्मणा सहेति ।
सह सर्वान्कामानश्नुते' इस वाक्यसे
। यही अर्थ कहा गया है। ब्रह्मभूतो विद्वान्ब्रह्मस्वरूपे- ब्रह्मभूत विद्वान् ब्रह्मखरूपसे गैव सर्वान्कामान्सहाश्नुते, न |
- ही एक साथ सम्पूर्ण भोगोंको प्राप्त
कर लेता है । अर्थात् दूसरे लोग यथोपाधिकृतेन खरूपेणात्मना जिस प्रकार जलमें प्रतिविम्बित जलमूर्यकादिवत्प्रतिविम्बभूतेन / सूर्यके समान अपने औपाधिक और
संसारी आत्माके द्वारा धर्मादि सांसारिकेण धर्मादिनिमित्तापे- निमित्तकी अपेक्षावाले तथा चक्षु क्षांश्चक्षुरादिकरणापेक्षांश्च कामान आदि इन्द्रियोंकी अपेक्षासे युक्त
सम्पूर्ण भोगोंको क्रमशः भोगते हैं; पयायणाश्नुत लाका कथ ताह उस प्रकार उन्हें नहीं भोगता । तो -यथोक्तेन प्रकारेण सर्वज्ञेन सर्व- फिर कैसे भोगता है ? वह.उपर्युक्त: