Book Title: Taittiriyo Pnishad
Author(s): Geeta Press
Publisher: Geeta Press

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Page 244
________________ अनु० १० ] शाङ्करभाष्यार्थ कथमेकत्वमित्युच्यते - स यश्चायं उसका एकत्व कैसे है ? सो सत्रका सत्र पूर्ववत् 'वह जो कि इस पुरुपमें है और जो यह आदित्यमें वाक्यद्वारा पुरुषे यथासाचादित्ये इत्येवमादि पूर्ववत् हूँ एक है' इस बतलाया गया है ॥ ४ ॥ एक सर्वम् ॥ ४ ॥ आदित्य और देहोपाधिक चेतनकी एकता जाननेवाले उपासकको मिलनेवाला फल २२९ स य एवंवित् । अस्माल्लोकात्प्रेत्य । एतमन्नमयमात्मानमुपसंक्रम्य । एतं प्राणमयमात्मानमुपसंक्रम्य । एतं मनोमयमात्मानमुपसंक्रम्य । एतं विज्ञानमयमात्मानसुपसंक्रम्य । एतमानन्दमयमात्मानमुपसंक्रम्य । इमाँल्लोकान्कामान्नी कामरूप्यनुसंचरन् । एतत्साम गायन्नास्ते । हा ३ वु हा ३ वु हा ३ वु ॥ ५ ॥ वह जो इस प्रकार जाननेवाला है इस लोक ( दृष्ट और अदृष्ट विषय - समूह ) से निवृत्त होकर इस अन्नमय आत्माके प्रति संक्रमण कर, इस प्राणमय आत्माके प्रति संक्रमण कर, इस मनोमय आत्माके प्रति संक्रमण कर, इस विज्ञानमय आत्माके प्रति संक्रमण कर, तथा इस आनन्दमय आत्माके प्रति संक्रमण कर इन लोकोंमें कामानी ( इच्छानुसार भोग भोगता हुआ ) और कामरूपी होकर ( इच्छानुसार रूप धारण कर) विचरता हुआ यह सामगान करता रहता है - हा ३ वु हा ३ वु हा ३ वु ॥ ५ ॥

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