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[ वल्ली २
होनेके कारण ग्रहण ही नहीं किया जा सकता था । किन्तु वह ग्रहण किया ही जाता है; इसलिये ब्रह्म है ही । यदि यह कार्यवर्ग असत्से उत्पन्न हुआ होता तो ग्रहण किये जानेपर भी असदात्मक ही ग्रहण किया जाता | किन्तु ऐसी बात है। नहीं | इसलिये ब्रह्म है ही। इसी
स्वात् । न चैवम्; तस्मादस्ति
त्र तत्र | " कथमसतः सज्जायेत"
श्रुत्यन्तरमसतः सज्जन्मासंभव -
( छा० उ० ६ । २ । २ ) इति सम्बन्धमें "असत् से सत् कैसे उत्पन्न हो सकता है" ऐसी एक अन्य श्रुतिने युक्तिपूर्वक असत् से सत्का जन्म होना असम्भव बतलाया है । इसलिये ब्रह्म सत् ही है - यही मत ठीक है ।
मन्दाचष्टे न्यायतः । तस्मात्सदेव
ब्रह्मेति युक्तम् ।
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तैत्तिरीयोपनिषद्
नोपलभ्येत । उपलभ्यते तु
तस्मादस्ति ब्रह्म । असतश्चेत्कार्य
गृह्यमाणमप्यसदन्वितमेव तत्
तद्यदि मृत्रीजादिवत्कारणं स्यादचेतनं तर्हि ?
शंका- यदि ब्रह्म मृत्तिका और बीज आदिके समान [ जगत्का उपादान ] कारण है तो वह अचेतन होना चाहिये ।
न, कामयितृत्वात् । न हि
समाधान- नहीं, क्योंकि वह ब्रह्मणश्चित्स्वरूपत्व-कामयित्रचेतनमस्ति भी कामना करनेवाला अचेतन नहीं कामना करनेवाला है। लोकमें कोई विवेचनम् लोके । सर्वज्ञं हि हुआ करता । ब्रह्म सर्वज्ञ है - यह हम पहले कह चुके हैं । अतः उसका कामना करना भी युक्त
ब्रह्मेत्यवोचाम । अतः कामयितृत्वोपपत्तिः ।
है ।