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मनु०९]
शाकुरभाष्यार्थ
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वस्तुविपयाणि चस्तुसामान्या- अन्य सविकल्प वस्तुओंके ] समान निर्विकल्पेऽद्धयेऽपि ब्रह्मणि प्रयो
समझनेके कारण वक्ताओंद्वारा, ब्रह्म
के निर्विकल्प और अद्वैत होनेपर ' वृभिः प्रकाशनाय प्रयुज्यमाना- भी, उसका निर्देश करनेके लिये
प्रयोग किया जाता है, उसे न न्यप्राप्याप्रकाश्यैव निवर्तन्ते पाकर अर्थात् उसे प्रकाशित किये स्वसामर्थ्याद्वीयन्ते
बिना ही लौट आता है-अपनी
सामर्थ्यसे च्युत हो जाता हैमन इति प्रत्ययो विज्ञानम् । [ 'मनसा सह' (मनके सहित)
इस पदसमूहमें ] 'मन' शब्द प्रत्यय तच यत्राभिधानं प्रवृत्तमतीन्द्रि
अर्थात् विज्ञानका वाचक है । वह, येऽप्यर्थे तदर्थे च प्रवर्तते प्रका- जहाँ-कहीं अतीन्द्रिय पदार्थोमें भी
शब्दकी प्रवृत्ति होती है वहीं उसे शनाय । यत्र च विज्ञानं तत्र प्रकाशित करनेके लिये प्रवृत्त हुआ
करता है । जहाँ कहीं भी विज्ञान वाचः प्रवृत्तिः। तस्मात्सहैव !
है वहीं वाणीकी भी प्रवृत्ति है। वामनसयोरमिधानप्रत्यययोः
अतः अभिधान और प्रत्ययरूप
वाणी और मनकी सर्वत्र साथ-साथ प्रवृत्तिः सर्वत्र ।
ही प्रवृत्ति होती है। तसाब्रह्मप्रकाशनाय सर्वथा इसलिये वक्ताओंद्वारा सर्वथा प्रयोक्तुभिः प्रयुज्यमाना अपि ब्रह्मका प्रकाश करनेके लिये ही
प्रयोगकी हुई वाणी, जिस प्रतीतिके वाचो यस्मादप्रत्ययविपयादन
अविषयभूत, अकथनीय, अदृश्य और भिधेयाददृश्यादिविशेषणात्सहैव
निर्विशेप ब्रह्मके पाससे मन अर्थात् मनसा विज्ञानेन सर्वप्रकाशन
| सबको प्रकाशित करनेमें समर्थ समर्थन निवर्तन्ते तं ब्रह्मण आ-| विज्ञानके सहित लौट आती है उस नन्दंश्रोत्रियस्यावृजिनस्याकामह- ब्रह्मके आनन्दको श्रोत्रिय निष्पाप