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तैत्तिरीयोपनिपद्
[बल्ली १
मह इति ब्रह्म । ब्रह्मणा वाव सर्वे वेदा महीयन्ते। भूरिति वै प्राणः । भुव इत्यपानः । सुवरिति व्यानः। मह इत्यन्नम् । अन्नेन वाव सर्वे प्राणा महीयन्ते । ता वा एताश्चतस्रश्चतुर्धा । चतस्रश्चतस्रो व्याहतयः । ता यो वेद । स वेद ब्रह्म । सर्वेऽस्मै देवा बलिमावहन्ति ॥ ३ ॥ ___'भूः, भुवः और सुवः' ये तीन व्याहृतियाँ हैं। उनमेंसे 'महः' इस चौथी व्याहृतिको माहाचमस्य ( महाचमसका पुत्र) जानता है । वह महः ही ब्रह्म है । वही आत्मा है । अन्य देवता उसके अङ्ग (अवयव) हैं। 'भूः' यह व्याहृति यह लोक है, 'भुवः' अन्तरिक्षलोक है और 'सुवः' यह खर्गलोक है ॥१॥ तथा 'महः' आदित्य है | आदित्यसे. ही समस्त लोक वृद्धिको प्राप्त होते हैं । 'भूः' यही अग्नि है, 'भुवः', वायु है, 'सुवः' आदित्य है तथा 'महः' चन्द्रमा है। चन्द्रमासे ही सम्पूर्ण ज्योतियाँ वृद्धिको प्राप्त होती हैं । 'भूः' यही ऋठक है, 'भुवः' साम है, 'सुवः' यजुः है ॥ २ ॥ तथा 'महः' ब्रह्म है। ब्रह्मसे ही समस्त वेद वृद्धिको प्राप्त होते हैं । 'भूः' यही प्राण है, 'भुवः' अपान है, 'सुवः' व्यान है तथा 'महः' अन्न है । अन्नसे ही समस्त प्राण वृद्धिको प्राप्त होते हैं । इस प्रकार ये चार व्याहृतियाँ हैं । इनमेंसे प्रत्येक चार-चार प्रकारकी है । जो इन्हें जानता है वह ब्रह्मको जानता है । सम्पूर्ण देवगग उसे बलि ( उपहार ) समर्पण करते हैं ॥३॥ भूर्भुवः सुवरिति इतीत्युक्तोप- 'भूर्भुवः सुवरिति' इसमें 'इति'
शब्द पूर्वकथित [ व्याहृतियों ] को प्रदर्शनार्थः । एता- ही प्रदर्शित करनेके लिये है। व्याहृतिचतुष्टयम्
स्तिस्र इति च प्रद- 'एतास्तिस्रः' ये शब्द भी पूर्व.. र्शितानां परामर्शार्थः । परामृष्टाः परामर्शके लिये हैं । 'वै इस
प्रदर्शित [व्याहृतियों ] के ही