Book Title: Swatantrata Sangram Me Jain
Author(s): Kapurchand Jain, Jyoti Jain
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xviii स्वतंत्रता संग्राम में जैन पिपल्या जिला मालवा ( म०प्र०) में आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ( छाणी) से प्राप्त की । दिगम्बर जैन परम्परा से जैन साहित्य को सुदृढ़ एवं स्थायी बना सके हैं। आचार्य सूर्यसागर जी उनमें से एक थे । उन्होंने लगभग 35 ग्रन्थों का संकलन / प्रणयन किया और समाज ने उन्हें प्रकाशित कराया। 'संयमप्रकाश' उनका अद्वितीय वृहत ग्रन्थ है, जिसके दो भागों (दस किरणों) में श्रमण और श्रावक के कर्तव्यों का विस्तार से विवेचन है । संयमप्रकाश सचमुच में संयम का प्रकाश करने वाला है, चाहे श्रावक का संयम हो चाहे श्रमण का । वि०स० 2001 (14 जुलाई 1952) में डालमिया नगर ( बिहार ) में उनका समाधिमरण हुआ । परम्परा के तीसरे आचार्य 108 श्री विजयसागर जी महाराज का जन्म वि०स० 1938 माघ सुदी 8 गुरूवार (सन् 1881) में सिरोली ( म०प्र०) में हुआ था । इन्होंने इटावा (उ०प्र०) में क्षुल्लक दीक्षा एवं मथुरा (उ०प्र०) में ऐलक दीक्षा ग्रहण की थी तथा मारोठ (राजस्थान) में आचार्य श्री सूर्यसागर जी से मुनि दीक्षा ली थी। आचार्य सूर्यसागर जी का आचार्य पद पूज्य मुनि श्री विजयसागर महाराज को लश्कर में दिया गया था। आचार्य विजयसागर जी महाराज परम तपस्वी वचनसिद्ध आचार्य | कहा जाता है कि एक गांव में खारे पानी का कुंआ था, लोगों ने आचार्य श्री से कहा कि हम सभी ग्रामवासियों को खारा पानी पीना पड़ता है, आचार्य श्री ने सहज रूप से कहा, "देखो पानी खारा नहीं मीठा है", उसी समय कुछ लोग कुएं पर गये और आश्चर्य पानी खारा नहीं मीठा था। आपके ऊपर उपसर्ग आये, जिन्हें आपने शान्तीभाव से सहा, आपका समाधि मरण वि०स० 2019 (20 दिसम्बर 1962) में मुरार (ग्वालियर) में हुआ । आचार्य विजयसागर जी के शिष्यों में आचार्य विमलसागर जी सुयोग्य शिष्य हुए। आचार्य विमल सागर जी का जन्म पौष बदी शुक्ला द्वितीया वि०स० 1948 ( सन् 1891 ) में ग्राम मोहना, जिला ग्वालियर (म०प्र०) में हुआ था। आपने क्षुल्लक दीक्षा एवं मुनि दीक्षा (वि.स. 2000 में) आचार्य श्री विजयसागर जी महाराज से ग्रहण की। आप प्रतिभाशाली आचार्य थे। आपके सदुपदेश से अनेकों जिनालयों का निर्माण और जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा हुई। आपके सान्निध्य में अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं व गजरथ महोत्सव सम्पन्न हुए । भिण्ड नगर को आपकी विशेष देन है। आपका जन्म मोहना ( म०प्र०) में तथा पालन-पोषण पीरोठ में हुआ, अतः आप 'पीरोठवाले महाराज' साथ ही भिण्ड नगर में अनेक जिनबिम्बों की स्थापना कराने के कारण भिण्ड वाले महाराज' के नाम से विख्यात रहे हैं। आचार्य विजयसागर जी ने अपना आचार्य पद विमलसागर जी महाराज (भिण्ड) को सन् 1973 में हाड़ौती जिले में दिया । आचार्य विमलसागर जी ने अनेक दीक्षाएं दी उनके शिष्यों में आचार्य सुमतिसागर जी, आचार्य निर्मल सागर जी, आचार्य कुन्थुसागर जी मुनि ज्ञानसागर जी आदि अतिप्रसिद्ध हैं । आचार्य विमलसागर जी महाराज ने अपना आचार्य पद ब्र० ईश्वरलाल जी के हाथ पत्रा द्वारा सुमतिसागर जी को दिया था। आचार्य विमलसागर जी महाराज का समाधिमरण 13 अप्रैल 1973 ( वि०स० 2030 ) में सांगोद, जिला कोटा (राजस्थान) में हुआ था । For Private And Personal Use Only

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