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धाक्कधर्म-प्रकाश ] लघुनन्दन है ! मुनि बड़ा पुत्र है और समकिती छोटा पुत्र है। आदिपुराणमें भी जिनसेनस्वामीने (सर्ग २ श्लोक ५४३) गौतम गणधरको “ सर्वशपुत्र" कहा है, उसी प्रकार यहाँ समकितीको जिनेश्वरका लघुनन्दन अर्थात् भगवानका छोटा पुत्र कहा है। अहा, जिसे जब सम्यग्दर्शन हुआ वहीं वह केवली भगवानका पुत्र हुमा, भगवानका उत्तराधिकारी हुआ, सर्वक्षपदका साधक हुआ। किसीको पुण्ययोगले नापकी विशाल सम्पत्तिका उत्तराधिकार मिले परन्तु वह तो क्षणमें नष्ट हो जाती है,
और यह समकिती तो केवलज्ञानी-सर्वश पिताकी अक्षयनिधिका उत्तराधिकारी हुआ, वह निधि कभी समाप्त नहीं होती, साविभनन्त रहती है। सम्यग्दर्शनसे ऐसी दशा प्रगट करे वह श्रावक कहलाता है। अतः श्रावकधर्मके उपासकको निरन्तर प्रयत्नपूर्वक सम्यग्दर्शन धारण करना चाहिए ।
जिस प्रकार आम्रका बीज आमको गुठली होती है, कोई कड़वी निम्बोलीके बीजमें से मधुर आम नहीं पकते, उसी प्रकार मोक्षरूपी जो मीठा आम उसका बीज तो सम्यग्दर्शन है, पुण्यादि विकार मोक्षका बीज नहीं है। भाई, तेरे मोसका बीज तेरे स्वभावको जातका होबे परन्तु उससे विरुद्ध न होवे । मोक्ष अर्थात् पूर्ण आननरूप वीतरागदशा, तो उसका बीज राग कैसे होवे ? राग मिश्रित विचारोंसे भी पार होकर निर्विकल्प आनन्दके अनुभव सहित आत्माकी प्रतीति करना सम्यग्दर्शन है, और वही मोक्षका मूल है।
मोक्षका बीज सम्यग्दर्शन, और उस सम्यग्दर्शनका बोज आत्माका भूवार्य स्वभाव-"भूयस्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी हवइ जीवो" भृतार्थ स्वभावका आश्रय करने पाला जीव सम्यग्दृष्टि है। मोक्षका मूल सम्यग्दर्शन है, ऐसा कहा परन्तु यदि कोई उस सम्यग्दर्शनका स्वरूप अन्य प्रकार माने तो उसे भी मार्गकी खबर नहीं। सम्यग्दर्शन कोई अन्यके आश्रय नहीं, आत्माके स्वभावके आश्रयसे ही सम्यग्दर्शन है। ... प्रश्नः-मोक्षमार्ग तो सम्यग्दर्शन-बान-चारित्ररूप कहा है ना? ...
उत्तरः-यह सत्य ही है, पर उसमें बीजरूप सम्यावर्शन है। सम्यग्दर्शन बिना शान अथवा चारित्र होता नहीं। पहले सम्यग्दर्शन होता है . पीछे ही.कानचारित्र पूर्ण होते मोक्ष होता है। पुरुषार्थसिद्धयुपायमें अमृतचन्द्रस्वामी भी