Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 173
________________ स्वतंत्रताकी घोषणा ] [ १६१ पुद्गलमें खट्टी-खारी अवस्था थी और ज्ञानने तदनुसार जाना, वहाँ लट्टेखारे तो पुद्गल के परिणाम हैं और पुद्गल उनका कर्ता है; तत्सम्बन्धी जो ज्ञान हुआ उसका कर्ता आत्मा है; उस ज्ञानका कर्ता वह वह खट्टी-खारी अवस्था नहीं है। कितनी स्वतंत्रता !! उसीप्रकार शरीरमें रोगादि जो कार्य हो उसके कर्ता वे पुद्गल हैं, आत्मा नहीं; और उस शरीरको अवस्थाका जो ज्ञान हुआ उसका कर्ता आत्मा है। आत्मा कर्ता होकर ज्ञानपरिणामको करता है परन्तु शरीरकी अवस्थाको वह नहीं करता । परमेश्वरके घरकी बात है । परमेश्वर सर्वश यह तो परमेश्वर होनेके लिये देव कथित यह वस्तुस्वरूप है। जगतमें चेतन या जड़ अनन्त पदार्थ अनन्तरूपसे नित्य रहकर अपने वर्तमान कार्यको करते हैं; प्रत्येक परमाणु में स्पर्श-रंग आदि अनन्त गुणः स्पर्शको चिकनी आदि अवस्था रंगको काली आदि अवस्था, उस उस अवस्थाका कर्ता परमाणुद्रव्य है; चिकनी अवस्था वह काली अवस्थाकी कर्ता नहीं है । इसप्रकार आत्मामें - प्रत्येक आत्मामें अमन्त गुण हैं; ज्ञानमें केवलज्ञानपर्यायरूप कार्य हुआ, आनन्दमें पूर्ण आनन्द प्रगट हुआ, उसका कर्ता आत्मा स्वयं है । मनुष्य - शरीर अथवा स्वस्थ शरीरके कारण वह कार्य हुआ ऐसा नहीं है। पूर्वकी मोक्षमार्गपर्याय के आधारसे वह कार्य हुआ- ऐसा भी नहीं है, ज्ञान और आनन्दके परिणाम भी एक- दूसरेके आश्रित नहीं हैं, द्रव्य ही परिणमित होकर उस कार्यका कर्ता हुआ है। भगवान आत्मा स्वयं ही अपने केवलज्ञानादि कार्यका कर्ता है, अन्य कोई नहीं है । यह तीसरा बोल हुआ । (४) वस्तुको स्थिति सदा एकरूप ( - कूटस्थ ) नहीं रहती सर्वशदेव द्वारा देखा हुआ वस्तुका स्वरूप ऐसा है कि वह नित्य भवस्थित रहकर प्रतिक्षण नवीन अवस्थारूप परिणमित होता रहता है । पर्याय बदले बिना ज्योंका त्यों कूटस्थ ही रहे- ऐसा वस्तुका स्वरूप नहीं है । वस्तु द्रव्य- पर्यायस्वरूप है, इसलिये उसमें सर्वथा अकेला नित्यपना नहीं है, पर्यायसे परिवर्तनपना भी है । वस्तु स्वयं ही अपनी पर्यायरूपसे पलटती है, कोई दूसरा उसे परिवर्तित करे- ऐसा नहीं है। नयी-नयी पर्यायरूप होना वह वस्तुका अपना स्वभाव है, तो कोई उसका क्या करेगा ? इन संयोगोंके कारण यह पर्याय हुई, इसप्रकार संयोगके कारण जो पर्याय मानता है उसने वस्तुके परिणमनस्वभावको नहीं जाना है, दो द्रव्योंको एक माना है । भाई, तू संयोगले न देख, वस्तुके स्वभावको देख । वस्तुका स्वभाव

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