Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 79
________________ भावधर्म-प्रकाश कहते हैं कि-'शुभ क्रिया परम्परासे-आगे जाकर मोक्षका कारण होगी-ऐसा अक्षानीको भ्रम है। हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह इनसे रहितपना, तथा महान परीषहोंका सहना; -इसके बड़े बोझसे, बहुत कालतक मरके चूरा होते हुए बहुत कष्ट करते हैं तो करो, परन्तु इसके द्वारा कर्मक्षय तो होता नहीं।' अबानीकी यह सब शुभक्रिया तो काष्टरूप है, दुःखरूप है, शुद्धम्वरूपके अनुभवकी तरह यह कोई सुखरूप नहीं, अनुभवका जो परम आनन्द है उसकी गंध भी शुभरागमें नहीं। ऐसे शुभरागको कोई मोक्षका कारण माने,-परम्परासे भी उस रागको मोक्षका कारण होना माने तो कहते हैं कि वह झूठा है, भ्रममें है । मोक्षका कारण यह नहीं: मोक्षका कारण तो शुद्धस्वरूपका अनुभव है। प्रश्नः-चौथे कालमें शुद्धस्वरूपका अनुभव मोक्षका कारण भले हो, परन्तु इस कठिन पंचमकालमें तो राग मोक्षका कारण होगा न ? उत्तरः-पंचम कालमें हुए मुनि पंचमकालके जावांका तो यह बात समझाते हैं। चौथे कालका धर्म जुदा और पंचमकालका धर्म जुदा-ऐसा नहीं है। धर्म अर्थात् मोक्षका मार्ग तीनों कालमें एक ही प्रकारका है। जब और जहाँ, जो कोई जीव मोक्ष प्राप्त करेगा वह गगको छोड़कर शुद्धम्वरूपके अनुभवसे ही प्राप्त करेगा । चाहे किसी भी क्षेत्रमें, कोई भी जीव गग द्वारा मोक्ष प्राप्त नहीं करता, यह नियम है। प्रथम जिसने मोक्षमार्गके ऐसे स्वरूपका निर्णय किया है और सम्यग्दर्शन द्वारा अपनेमें उसका अंश प्रगट किया है, उसे बादमें गगकी मंदताके कौनसे प्रकार होते हैं उनके कथनमें चार प्रकारके दानकी बात चल रही है । मुनि आदि धर्मात्माके प्रति भक्तिसे आहारदान-औषधिदानके पश्चात् शानदानका भी भाव भावकको आता है । उसे वीतरागी शास्त्रोंका बहुत विनय और बहुमान होता है। वीतरागी शानकी प्रभावना कैसे हो, बहुत जीयोंमें इसका प्रचार कैसे हो, इसके लिये वह अपनी शक्ति लगावे: इसमें अन्य जीव समझे या न समझे उसकी मुख्यता नहीं परन्तु धर्मीको अपने सम्यग्ज्ञानका बहुत प्रेम है उसकी मुख्यता है; अर्थात् अन्य जीव भी सचा तत्त्वज्ञान कैसे प्राप्त करें वैसी भावना धर्मीको होती है। सर्वशदेव द्वारा कहे गये शास्त्रोंका रहस्य स्वयं जानकर अन्यको उसे समझाना और भक्ति से उसका प्रचार करना वह शानदान है । अन्तरमें तो स्वयंने स्वयंको सम्यग्ज्ञानका दान दिया, और बाहामें अन्य जीव भी ऐसा मान प्राप्त करें और भव दुःबसे टें-पेसी भावना धर्मीको होती है। शास्त्रज्ञानके बहाने मम्मको

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