________________
Gar 11
[ श्रावकधर्म-प्रकाश
घरमें विराजमान करे, और सजाकरके उनका बहुमान करे । यह सब शानका विनय है ।
शानदानके सम्बन्धमें कुन्दकुन्दस्वामीकी पूर्वभवकी कथा प्रसिद्ध है, पूर्वभवमें वह एक सेठके यहाँ गायोंका ग्वाला था । एकबार उस ग्वालेको वनमें कोई शास्त्र मिला; उसने अत्यन्त बहुमानपूर्वक किन्हीं मुनिराजको उस शास्त्रका दान क्रिया । उस समय अव्यक्तरूपसे ज्ञानकी अचिंत्य महिमाका कोई भाव पैदा हुआ; इससे वह उस सेठके घर ही जन्मा; छोटी उम्र में ही मुनि हुआ और ज्ञानका अगाध समुद्र उसको उल्लसित हुआ। अहा, उन्होंने तो तीर्थकर परमात्माकी दिव्यवाणी साक्षात् सुनी, और भरतक्षेत्रमें ज्ञानकी नहर चलाई ! इनके अन्तरमें ज्ञानकी बहुत शुद्धि प्रमट हुई और बाह्यमें भी श्रुतकी महान् प्रतिष्ठा इस भरतक्षेत्रमें उन्होंने की । अहा, उनके निजवैभवकी क्या बात ! ज्ञानदान से अर्थात् ज्ञानके बहुमानके भावसे ज्ञानका क्षयोपशमभाष खिलता है, और यहाँ तो उसका उत्कृष्ट फल बताते हुए कहते हैं कि वह जीव थोड़े भवमें केवलज्ञान प्राप्त करेगा, उसे समवसरणकी शोभाकी रखना होगी और तीनलोकके जीव उसका उत्सव मनायेंगे। क्योंकि ज्ञानानन्द स्वभावकी आराधना साथमें वर्तती है अर्थात् आराधकभावकी भूमिकामें ऐसा ऊँचा पुण्य बँधता है । उसमें धर्मका लक्ष्य ज्ञानस्वभावकी आराधना पर है, राग अथवा पुण्य पर उसका लक्ष्य नहीं, वह तो बीचमें अनाजके साथके भूसेकी तरह सहज ही प्राप्त जाता है।
ज्ञानस्वभावकी आराधनासे धर्मी जीव सर्वज्ञपदको साधता है । उसे किसी समय ऐसा भी होता है कि, अरे ! हम भगवानके पास होते, भगवानकी वाणी सुनते और भगवानले प्रश्नोंका सीधा समाधान लेते; अब भरतक्षेत्रमें भगवानका विरह हुआ; किमले प्रश्न पूछूं ? और कौन समाधान करे ? धर्मात्माको सर्वज्ञपरमात्मा के विरहका ऐसा भाव आता है। भरत चक्रवर्ती जैसेको भी ऋषभदेव भगवान मोक्ष पधारे तब ऐसा विरहका भाव आया था। अंतरंगमें निजके पूर्ण ज्ञानकी भावना है कि अरे ! इस पंचमकालमें अपने सर्वज्ञपदका हमको विरह ! अर्थात् निमित्तमें भी सर्वज्ञका विरह लताता है। इस भरतक्षेत्रमें कुंदकुंद प्रभुको विचार आया- अरे नाथ ! पंचमकालमें इस भस्तक्षेत्र में आपका बिछोह हुआ, सर्वज्ञताका विरह हुआ ... इसप्रकार सर्वज्ञके प्रति भक्तिका भाव उल्लसित हुआ, और वे चितवन करने लगे। वहां पुण्यका योग था और पात्रता भी विशेष थी, इससे सीमंधर भगवानके पास जानेका योग बना। अहा,
सेवा (जीव) मनुष्य शरीरसहित विदेहक्षेत्र गया, और भगवानसे मिलाप हुआ ।