________________
+++++
22.....****
[भावकधर्म-प्रकाश ....... [११] .......
अभयदानका वर्णन
MAMALIN
MARATHI
RSSSSSSS0000
99999999999 । धर्मी जीव सम्यग्दर्शनादि द्वारा जिसप्रकार अपने दुःखको ज दूर करनेका उपाय करता है उसी प्रकार अन्य जीवों पर भी उसे ,
करुणाके भाव आते हैं । जिसे जीवदया ही नहीं उसे सच्चा धर्म
अथवा दान कहाँसे हो ?....सच्चा अभयपना वह है कि जिससे भव8 भ्रमणका भय दूर हो, आत्मा निर्भयरूपसे सुखके मार्गकी ओर अग्रसर 8 8 हो । अज्ञान ही सबसे बड़ा भयका कारण है। सम्यग्ज्ञान द्वारा 8
ही वह भय दूर होकर अभयपना होता है; इसलिये जीवोंको सम्यग्ज्ञानके मार्गमें लगाना सच्चा अभयदान है ।
9000000000000
भाषकधर्मके कथनमें चार प्रकारके दोनोंका वर्णन चल रहा है। उसमें आहारदान, औषधदान तथा शानदान-इन तीनका वर्णन हुआ। अब चौथा अभयदान, उसका वर्णन करते हैं
सर्वेषामभयं प्रवृदकरुणैर्यद्दीयते प्राणिनां दानं स्यादभयादि तेन रहितं दानत्रयं निष्फलम् । आहारौषधशास्त्रदानविधिभिः क्षुद्रोगजाडयाद्भयं
यत्तत्पात्रजने विनश्यति ततो दानं तदेकं परम् ॥ ११ ॥ अतिशय करुणावान भव्य जीवों द्वारा समस्त प्राणियोंको जो अभय देने में आता है वह अभयदान है। बाकीके तीन दान इस जीवदयाके बिना निष्फल है। माहारदानसे क्षुधाका दुःख दूर होता है, औषधदानसे रोगका भय दूर होता है और शानदानसे अज्ञानका भय दूर होता है-इस प्रकार इन तीन दानोंसे भी जीवोंको अभय ही देने में आता है। इसलिये सब दानों में अभयदान ही एक श्रेष्ठ मोर प्रशंसनीय है।