________________
[ भावकवर्म-प्रमाण .......... [१६] .......... पुण्यफलको छोड़कर धर्मी जीव मोक्षको साधता है
.
我看着投资者最普車本身资者事者参事長者
+ အစ္စ प्रभो ! दिव्यध्वनि द्वारा आपने आत्माके अचिन्त्य निधानको स्पष्ट रूपसे बताया, तो अब इस जगत्में ऐसा कौन है जो इसके खातिर राजपाटके निधानको तृणसम समझकर न छोड़े ?और चैतन्यनिधानको न साधे ? अहा, चैतन्यके आनन्दनिधानको जिसने देखा उसे रागके फलरूप बाह्य-वैभव तो तृणतुल्य
SSSSSSS
लगता है।
800000SSSSSss
*
655555550000
पुत्रे राज्यमशेषमर्थिषु धनं दत्वाऽभयं प्राणि प्राप्ता नित्यमुखास्पदं मुतपसा मोक्षं पुरा पार्थिवाः । मोक्षस्यापि भवेत्ततः प्रथमतो दानं निधानं बुधैः शक्त्या देय मिदं सदातिचपले द्रव्ये तथा जीविते ॥ १६ ॥
यह जीवन और धन दोनों अत्यंत क्षणभंगुर है-ऐसा जानकर चतुर पुरुषोंको सदा शक्ति अनुसार दान करना चाहिये, क्योंकि मोक्षका प्रथम कारण दान है। पूर्षमें भनेक राजामोंने याबक जनोंको धन देकर, सब प्राणियोंको अभय देकर भौर समस्त राज्य पुत्रको देकर सम्यक्तप द्वारा नित्य सुखास्पद मोक्ष पाया ।
देखिये, यहाँ ऐसा बताते हैं कि दानके फलमें धर्मी जीवको राज्य-सम्पदा धगैरह मिले उसमें वह सुख मानकर मूञ्छित नहीं होता, परन्तु दानादि द्वारा उसका त्यांग करके मुनि होकर मोक्षको साधने चला जाता है।