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भावकधर्म-प्रकाश ]
[२३]
श्रावककी धर्मप्रवृत्तिके विविध प्रकार
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धर्मी जीवको घरकी शोभाकी अपेक्षा जिन-मंदिरकी शोभाका अधिक उत्साह होता है; सर्व प्रकारसे संसारकी ओरका प्रेम कम करके धर्मके प्रेमको वह बढ़ाता है। मात्र किसी कुल में जन्म लेनेसे श्रावकपना नहीं होता, परन्तु सर्वज्ञको पहिचान और स्त्रसन्मुखता पूर्वक श्रावकधर्म का आचरण करनेसे श्रावकपना होता है । जहाँ धर्मके उत्सव के लिये रोज दान होता है, जहाँ मुनि आदि धर्मात्माओंका आदर होता है वह गृहस्थाश्रम शोभा पाता है, इसके बिना श्रावकपना शोभा नहीं पाता है ।
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जहाँ जिन-मन्दिर हो वहाँ श्रावक हमेशा भक्तिसे नये-नये उत्सव करता है, उसका वर्णन करते हैं
यात्राभिः स्नपनैर्महोत्सवशतैः पूजाभिरुल्लोचकैः नैवेद्यैर्बलिभिर्ध्वजैश्व कलशैः सूर्यत्रिकेर्जागरेः । घंटा चारदर्पणादिभिरपि प्रस्वार्य शोभां पर्श भव्याः पुण्यमुपार्जयन्ति सततं सत्यत्र चैत्यालये ॥ २३ ॥
इस जगतमें जहाँ बैत्यालय हो वहाँ भव्य जोव रथयात्रा निकाले | भगवानका कलशाभिषेक आदि सैकड़ों प्रकारके बड़े-बड़े उत्सव करे, अनेक प्रकारके पूजनादि करे, चाँदनी - बँदेवा - तोरण चढ़ावे, नैवेद्य तथा अन्य भेंट चढ़ावे ध्वज, कलश, सूर्यत्रिक अर्थात् गीत-नृत्य - साज, जागरण, घंटा, बँवर तथा दर्पण आदि द्वारा उत्कृष्ट शोभाका विस्तार करे। - इसप्रकार निरन्तर पुण्यका उपार्जन करता है ।