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[भावकधर्म-प्रकाश ...........[२६].......... मोक्षकी साधनासहित ही अणुव्रतादिकी सफलता
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తల్లి हे भव्य ! तेरा साध्य मोक्ष है; अर्थात् प्रत अथवा महाव्रतके पालनमें उस-उस प्रकारको अंतरंगशुद्धि बढ़ती जाय और मोक्षमार्ग सघता जाय-उसे तू लक्ष्यमें रखना । मोक्षके ध्येयको चूककर जो कुछ
करनेमें आवे वह तो दुःख और संसारका ही कारण है। ETRIETRIHARJHIK38333 5 3 3353HIREXJRARIES
धर्मी जीवको मोक्ष ही साध्यरूप है; मोक्षरूप साध्यको भूलकर जो अन्यका आदर करता है उसके वतादि भी संसारके ही कारण होते हैं-ऐसा अब
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भव्यानामणुभिव्रतैरनणुभिः साध्योत्र मोक्षः परं नान्यत्किंचिदिइव निश्चयनयात् जीवः सुखी जायते । सर्व तु व्रतनातमिदृशधिया साफल्यमेत्यन्यथा
संसाराश्रयकारणं भवति यत् तन्दुःखमेव स्फुटम् ॥२६॥ यहाँ भव्य जीघको अणुवन अथवा महाव्रत द्वारा मात्र मोक्ष ही साध्य है, संसार संबंधी अन्य कोई भी साध्य नहीं, क्योंकि निश्चयनयसे मोक्षमें ही जीव सुखी होता है। ऐसी बुद्धि अर्थात् मोक्षकी बुद्धिसे जो व्रतादि करनेमें आते हैं वे सर्व सफल है; परन्तु इस मोक्षरूपी ध्येयको भूलकर जो व्रतादि करने में आते हैं ये तो संसारके कारण है और दुःखी ही है।
देखो, अधिकार पूरा करते हुये अन्तमें स्पट करते हैं कि भाई, हमने प्रावकके धर्मरूपमें पूजा-दान आदि अनेक शुभभावोंका वर्णन किया तथा अणुवत आदिका वर्णन किया, परन्तु उसमें जो शुभराग है उसे साध्य न मानना, उसको ध्येय न