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भावकधर्म-प्रकाश ] summ e ...[२७]....................:
श्रावकधर्मकी आराधनाका अंतिम फल-मोक्ष In............
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S SSSSSSSSex श्रावकधर्मका अधिकार पूर्ण करते हुये मंगल आशीर्वाद पूर्वक 8 श्री मुनिराज कहते हैं कि इस श्रावकधर्मका प्रकाश जयवंत रहो.... 8 9 ऐसे धर्मके आराधक जीव जयवंत रहो! धर्मकी आराधना द्वारा ही " मनुष्यभवकी सफलता है। bao cao so 8 o oooh
इस देशवत-उद्योतन अधिकारमें श्री पननन्दी मुनिराजने भावकके धर्मका बहुत घर्णन २६ गाथामें किया । अब अंतिम गाथामें आशीर्वाद पूर्वक अधिकार समाप्त करते हुये कहते हैं कि उत्तम कल्याणकी परम्परा पूर्वक मोक्षफल देनेवाला यह देशवतका प्रकाश जयवन्त रहे
यत्कल्याणपरम्परार्पणपरं भव्यास्मनां संस्तो पर्यन्ते यदनन्तसौख्यसदनं मोक्षं ददाति ध्रुवम् । तज्जीयादतिदुर्लभं मुनरतामुख्येर्गुणैः प्रापितं
श्रीमत्पंकजनंदिभिर्विरचितं देशवतोद्योतनम् ॥ २७॥ धर्मी जीवके लिये यह देशवत संसारमें तो उत्तम कल्याणकी परम्परा (चक्रवर्तीपद, इन्द्रपद, तीर्थकरपद आदि) देने वाला है और अन्तमें अनन्तसुखका घाम ऐसे मोक्षको अवश्य देता है। श्रीमान् पननन्दी मुनिने जिसका वर्णन किया है, तथा उत्तम दुर्लभ मनुष्यपमा और सम्यग्दर्शनादि गुणके द्वारा जिसकी प्राप्ति होती है, ऐसे देशवतका उद्योतन (प्रकाश ) जयवन्त रहे।
जो जीव धर्मी है, जिसे आत्माका भान है, जो मोक्षमार्गकी साधनामें तत्पर है उसे व्रत-महावतके रागसे ऐसा ऊँचा पुण्य बँधता है कि चक्रवतींपना, तीर्थकरपना आदि लोकोत्तर पदवी मिल जाती है, पंचकल्याणक मादिकी कल्याणपरम्परा उसे प्राप्त होती है, और अन्तमें गग तोड़कर वह मोक्ष पाता है।