Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 160
________________ en opg8888888888888888888888888888888888 स्वतंत्रता की घोषणा HERLASRIRATRAILE B A RSANRARIERTAINS [चार बोलोंसे स्वतंत्रताको घोषणा करता हुआ विशेष प्रवचन ] समयमार-कलश २११ ] [सं० २०२२ कार्तिक शुक्ला ३-४ EYESTERESEARNASEEBRSEEBHB भगवान सर्वज्ञदेवका देखा हुआ वस्तुस्वभाव कैसा है, उसमें कर्ता-कर्मपना किसमकार है, वा अनेक प्रकारसे दृष्टांत और युक्तिपूर्वक पुनः पुनः समझाते हुए, उस स्वभावके निर्णयमें मोक्षमार्ग किसप्रकार आता है वह पूज्य गुरुदेवने इन प्रवचनोंमें बतलाया है । इनमें पुनः पुनः मेदवान कराया है और वीतरागमार्गके रहस्यभूत स्वतंत्रताको घोषणा करते हुए कहा है कि-सर्वशदेव द्वारा कहे हुए इस परमसत्य वीतरागविज्ञानको जो समझेगा उसका अपूर्व कल्याण होगा। RATRITIYATREATRISALALAILS LARITREETIMATAJITATASATRE कर्ता-कर्म सम्बन्धी मेदशान कराते हुए आचार्यदेव कहते हैं कि ननु परिणाम एष किल कर्म विनिश्चयतः स भवति मापरस्य परिणामिन एव भवेत् । न भवति कर्तृशून्यमिह कर्म न चेकतया स्थितिरिह वस्तुनो भवतु कर्तु तदेव ततः ।। २११ ॥ वस्तु स्वयं अपने परिणामकी कर्ता है, और अन्य के साथ उसका कर्ता-कर्म का सम्बन्ध नहीं है-इस सिद्धांतको आचार्यदेवने बार बोलोंसे स्पष्ट समझाया है: (१) परिणाम अर्थात् पर्याय ही कर्म है-कार्य है। (२) परिणाम अपने मायभूत परिणामीके ही होते हैं, अन्यके नहीं होते। क्योंकि परिणाम अपने-अपने आश्रयभूत परिणामी (द्रव्य)के आश्रयसे होते है। भन्यके परिणाम अन्यके आश्रयसे नहीं होते। (३) कर्म-कर्ताके बिना नहीं होता, अर्थात् परिणाम वस्तुके बिना नहीं होते।

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