Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 143
________________ भावधर्म-प्रकाश ] .................[२४]........... श्रावकको पुण्यफलप्राप्ति और मोक्षकी साधना . . . ********* EBRUAE333333BABESBXB भ A RERAISATANISATRITIERSA श्रावकको सिद्ध भगवान जैसे आत्मिक-आनन्दका अंश होता है। वह उत्तम स्वर्गमें जाता है परन्तु उसके वैभवमें मूञ्छित नहीं होता, वहाँ भी आराधकभाव बनाये रखता है, और बादमें मनुष्य होकर वैराग्य प्राप्त कर मुनि होकर आत्मसाधना पूरी करके केवलशान प्रगट * करके सिद्धाळयमें जाता है। ऐसा श्रावकधर्मका फल है। STARTRSRARARIAN RAATRA + ARTISRIVASRHARURREARS धर्मी श्रावक सर्वशदेवको पहिचानकर देवपूजा आदि षट्कार्य प्रतिदिन करता है, जिन-मन्दिरमें अनेक उत्सव करता है, और उससे पुण्य बांधकर स्वर्गमें जाता है। वहाँ आराधना चालू रखकर बादमें उत्तम मनुष्य होकर मुनिपना लेकर केवलहान और मोक्ष पाता है; ऐसी बात अब कहते हैं ते चाणुव्रतधारिणोऽपि नियतं यान्त्येव देवालय तिष्ठंत्येव महर्दिकामरपदं तत्रैव लन्ध्वा चिरम् । अनागत्य पुनः कुलेऽतिमहति प्राप्त प्रकृष्टं शुभाव मानुष्यं च विरागतां च सकलत्यागं च मुक्तास्ततः ॥ २४ ॥ वह धावक चाहे मुनिवत न ले सके और अणुव्रतधारी ही होवे तो भी, मायु पूर्ण होने पर नियमसे स्वर्गमें जाता है, वहाँ अणिमा मादि महान ऋद्धिसहित बहुत काल पर्यन्त अमरपदमें (देवपदमें ) रहता है, उसके बाद प्रकृट शुम द्वारा महान उत्तम कुलमें मनुष्यपना प्राप्त कर, वैरागी होकर, सकल परिप्रहका त्याग कर मुनि होकर शुद्धोपयोगरूपी साधन द्वारा मोक्ष पहुँचता है।-स प्रकार श्रावक परम्पराले मोसको साधता है-ऐसा जानना । ।

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