Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ भापकर्म-प्रकाश ] [११९ शुरूसे ही जो रागको श्रद्धा इष्ट मानकर अपनाता है यह रागसे दूर कैसे होवेगा? और रागरहित मोक्षमार्गमें कहाँसे आवेगा? ऐसे जीव शुभको तो 'भोगहेतु धर्म' समयसारमें कहा है, उसे 'मोक्षहेतु धर्म' नहीं कहते । मोक्षके हेतुभूत सच्चे धर्मकी अबानीको पहचान भी नहीं, रागरहित ज्ञान क्या है उसे यह नहीं जानता, शुबमानके अनुभवका उसे अभाव है इसलिये मोक्षमार्गका उसे अभाव है। धमीको शुद्धजानके अनुभव सहित जो शुभराग शेष रहा उसे व्यवहारसे धर्म, अथवा मोक्षका साधन कहने में आता है। नीचेकी साधक भूमिकामें ऐसा व्यवहार है जहर, उसे जैसा है वैसा मानना चाहिये ।-- इसका अर्थ यह नहीं कि इसे ही उपादेय मानकर सन्तुष्ट हो जाना । वास्तवमें उपादेय तो मोक्षार्थीको निश्चयरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग ही है, उसके साथ उस. उस भूमिकामें जो व्यवहार होता है उसे व्यवहारमें आदरणीय कहा जाता है। तीर्थकर. देवका आदर करना दर्शन-पूजन करना, मुनिवरोंको भक्ति, आहारदान, स्वाध्याय, अहिंसादि व्रतोंका पालन-ये सब व्यवहार है वह सत्य है, मान्य है, मादरणीय, परन्तु निश्चयष्टिमें शुद्धात्मा ही उपादेय है और उसके आश्रयसे दी मोक्षमार्ग है। ऐसी श्रद्धा प्रारम्भसे ही होनी चाहिये । ___ व्यवहारको एकान्त हेय कहकर कोई जीव देवदर्शन-पूजन-अक्ति, मुनि मादि धर्मात्माका बहुमान, स्वाध्याय व्रतादिको छोड़ दे और अशुभको सेवे वह तो स्वच्छन्दी और पापी है; शुद्धात्माके अनुभवमें लीनता होते ही ये सब व्यवहार र जाते है, परन्तु उसके पूर्व तो भूमिकाके अनुसार व्यवहारके परिणाम होते हैं। शुखस्वरूपकी दृष्टि और साथमें भूमिका अनुसार व्यवहार-यह दोनों साधकको साथमें होने हैं। मोक्षमार्गमें ऐसा निश्चय-व्यवहार होता है । कोई एकान्त प्रहण करे अर्थात् नीचेकी भूमिकामें भी व्यवहारको स्वीकार न करे अथवा निश्चय बिना उसे ही सर्वस्व मान ले तो वे दोनों मिथ्यादृष्टि हैं, एकान्तवादी है, और उन्हें निश्चयकी मथवा व्यवहारकी खबर नहीं। बय और निक्षेप सम्यक्सानमें होते हैं अर्थात् सम्यकदृष्टिके ही वे सच्चे होते है। स्वभावष्टि हुई उस सम्यक् भावश्रुत हुमा, और उस समय प्रमाण मौर नय सच्चे हुए; बादमें निश्चय क्या मौर व्यवहार क्या-ऐसी उसको बबर पढ़ती है। निश्चयसापेक्ष व्यवहार धर्मीको हो होता है; मवानीको जो एकान्त व्यवहार है वह सच्चा मार्ग नहों अथवा वह सच्चा व्यवहार नहीं । धर्मी वीव शुद्धताको गाते हुए

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176