Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 140
________________ ११२८ ] [ भावकधर्म-प्रकाश देखो, जहाँ धर्मके प्रेमी श्रावक हो वह जिन-मंदिर हो, और जहाँ मन्दिर हो वहाँ प्रतिदिन मंगल-महोत्सव हुआ करे। किसी समय मंदिरकी वर्षगाँठ हो, भगवानके कल्याणकका प्रसंग हो, पर्युषण हो, अष्टाह्निका-पर्व हो, ऐसे अनेक प्रसंगोंमें धर्मी जीव भगवानके मन्दिर में पूजा-भक्तिका उत्सव करावे । इस बहाने दानादिमें अपना धन खर्च करके शुभभाव करे और रागको घटावे। जो कि वीतरागभगवान तो कुछ नहीं देते और कुछ नहीं लेते, पूजा करनेवालेके प्रति अथवा निन्दा करने वालेके प्रति उन्हें तो वीतरागभाव ही वर्तता है, परन्तु भक्तको जिन-मन्दिरकी शोभा आदिका उल्लासभाव आये बिना नहीं रहता। अपने घरकी शोभा बढ़ानेका भाव कैसे माता है ?--उसीप्रकार धर्मीको धर्मप्रसंगमें जिन मन्दिरकी शोभा किसप्रकार बड़े,-ऐसा भाव आता है। श्रावक अत्यन्त भक्तिसे शुद्ध जल द्वारा भगवानका मभिषेक करे तब उसे ऐसा भाव उल्लसित होवे कि मानों साक्षात् अरहन्तदेवका ही स्पर्श हो रहा हो। जिसप्रकार पुत्रके लग्न आदि प्रसंगमें उत्सव करता है और मंडपकी तथा घरकी शोभा कराता है, उसकी अपेक्षा अधिक उत्साहसे धर्मी जीव धर्मकी शोभा और उत्साह करावे ।-जहाँ मन्दिर हो और जहाँ धर्मो श्रावक हो वहाँ बारम्बार आनन्द-मंगलके ऐसे प्रसंग बना करें, और घरके छोटे बच्चोंमें भो धर्मके संस्कार पड़े। धर्मके लिये जो अनुकूल न हो अथवा धर्मके लिये जो बाधाकारक लगे ऐसे देशको, ऐसे संयोगको धर्मी जोव छोड़ दे। जहाँ जिन-मन्दिर आदि हो वहां धर्मात्मा रहे, और वहां नये-नये मंगल-उत्सव हुआ करें। और कोई प्रकारका जिनमन्दिर अथवा जिनप्रतिमा हो वहाँ यात्रा करनेके लिये अनेक श्रावक आवें; तथा सम्मेदशिखर, गिरनार आदि तीर्थोकी यात्रा भो श्रावक करे,-सप्रकार वह मोक्षगामी सन्तोंको याद करता है। किसी समय मन्दिरको वर्षगाँठ हो, किसी समय मन्दिरको दस अथवा पच्चीस अथवा सौ वर्ष पूरे होते हो तो वह उसका उत्सव करे; कोई बड़े संत-महात्मा मुनि मादि पधारें तब उत्सव करे, पुत्र-पुत्रीके लग्नोत्सव-जन्मोत्सव मादिके निमित्त भी मन्दिरमें पूजनादिसे शोभा करावे, रथयात्रा निकलवाये, इस प्रकार प्रत्येक प्रसंगमें गृहस्थ धर्मको याद किया करे । कोई नया महान् शान आवे तब उसके बहुमानका उत्सव करे । शास्त्र अर्थात् जिनवाणी, वह भी भगवानकी तरह ही पूज्य है। अपने घरको जैसे तोरण आदिसे शृंगारित करता है और नये-नये बन लाता है उसीप्रकार जिन-मन्दिरके द्वारको भौति-भांतिके तोरण मादिसे शृंगारित करे और नये-नये बंदोषा आदिसे शोभा बढ़ाये। इसप्रकार भावकके

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