Book Title: Shravak Dharm Prakash
Author(s): Harilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ Pto] [ श्रावक-प्रकाश सामने बाहरके चिन्तामणि आदिकी वांछा ज्ञानीको नहीं है, जो भी पुण्यके फलमें चिन्तामणि, कल्पवृक्ष आदि वस्तुएं होती हैं खरी, इसके चिन्तवनले बाह्य सामग्री वस्त्र - भोजनादि मिलते हैं, परन्तु इसके पाससे कोई धर्म अथवा सम्यग्दर्शनादि नहीं मिलता है। चौथे कालमें इस भरतभूमिमें भी कल्पवृक्ष वगैरह थे, समवसरणमें भी वे होते हैं, परन्तु आजकल लोगोंके पुण्य घट गए हैं इसलिये वे वस्तुएँ यहाँ देखनेमें नहीं आती; परन्तु आचार्यदेव कहते हैं कि ऐसे पुण्यफलकी महिमा हमें नहीं, हमें तो वह दातार ही उत्तम लगता है कि जो धर्मकी आराधना सहित दान करता है । दानके फलमें कल्पवृक्ष आदि तो इसके पास सहजरूपमें आवेंगे । पारसका पत्थर लोहेमेंसे सोना करता है- इसमें क्या ! - इस चैतन्यचिन्तामणिका स्पर्श होते ही आत्मा पामरमेंसे परमात्मा बन जाता है-ऐसा चिन्तामणि शानीके हाथमें आ गया है । वह धर्मात्मा अन्तर में राग घटाकर धर्म की वृद्धि करता है, और बाह्यमें धर्मकी वृद्धि कैसे हो, देव गुरुकी प्रभावना और महिमा कैसे बढ़े और धर्मात्मा - साधर्मीको धर्मसाधन में किसप्रकार अनुकूलता हो, ऐसी भावना से वह दानकार्य करता है। जब आवश्यकता हो तब और जितनी आवश्यकता हो उतना देनेके लिये वह सदैव तैयार रहता है, इसलिये वह वास्तव में चिन्तार्माण और कामधेनु है । दाता पारसमणिके समान है, क्योंकि उसके सम्पर्क में आनेवालेकी दरिद्रता वह दूर करता है । मेरुपर्वतके पास देवकुरु - उत्तरकुरु भोगभूमि है, वहाँ कल्पवृक्ष होते हैं, वे इच्छित सामग्री देते है; वहाँ जुगलिया जीव होते हैं और कल्पवृक्षसे अपना जीवननिर्वाह करते हैं । दानके फलमें जीव वहाँ जन्म लेता है। यहाँ भी प्रथम - द्वितीय तृतीय आरेमें ऐसे कल्पवृक्ष थे, परन्तु वर्तमानमें नहीं हैं। इसलिये शास्त्रकार कहते हैं कि ये कल्पवृक्ष आदि प्रसिद्ध होते हुए भी वर्तमान में यहाँ तो वे किसीका उपकार करते देखनेमें नहीं आते । यहाँ तो दातार श्रावक ही इच्छित दान द्वारा उपकार करता देखने में आता है । चिन्तामणि आदि तो वर्तमानमें श्रवणमात्र हैं दिखते नहीं, परन्तु चिन्तामणिकी तरह उदारता से दान करनेवाला धर्मी - भाबक तो वर्तमान में भी दिखाई पड़ता है। देखो, नौ सौ वर्ष पूर्व पद्मनंदी मुनिराजने यह रखा है; उस समय ऐसे श्रावक थे। ये पद्मनंदी मुनिराज महान संत थे। वनवासी दिगम्बर संतोंने सर्वज्ञके वीतरागमार्ग की यथार्थ प्रणालीको टिका रखा है। दिगम्बर मुबि तो जैनशासनके स्तंभ

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176