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भावकारी-प्रकारा |
धर्मके प्रेम सहित दानादिका जो भाव हुआ वह पूर्वमें अनन्तकालमें नहीं दुवा इसलिये अपूर्व है, और उसके फलमें जो शरीर आदि मिलेंगे वे भी अपूर्ण है, क्योंकि भाराधकभाव सहित पुण्य जिसमें निमित्त हो ऐसा शरीर भी पहले महानदशामें कभी नहीं मिला था। जीवके भावोंमें अपूर्वता होने पर संयोगोंमें भी अपूर्वता हो गई। सत्पात्रदानके प्रसंगसे अन्तरमें स्वयंको धर्मकी प्रीति पुष्ट होती है उसकी मुख्यता है; उसके साथका राग और पुण्य भी जदा प्रकारका होता है। -इसप्रकार दानका उत्तम फल जानना ।
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