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भावकधर्म-प्रकाश कहते हैं कि शक्ति-प्रमाण दान करना। तेरे पास एक रुपयेकी पूंजी हो तो उसमेंसे एक पैसा दान करना...परन्तु दान अवश्य करना, लोभ घटाने का अभ्यास अवश्य करना । लाखों-करोड़ोंकी पूँजी हो तभी दान दिया जा सके और ओछी पूँजी हो उसमें दान नहीं दिया जा सके-ऐसा कोई नहीं है। स्वयं का लोभ घटानेकी बात है, इसमें कोई पूँजीकी मात्रा देखना नहीं है। उत्तम श्रावक कमाई का चौथा भाग धर्ममें सर्व करे, मध्यमरूपसे छट्ठा भाग खर्च करे और कमसे कम इसमांश खर्च करे-ऐसा उपदेश है। चन्द्रकान्त-मणिकी सफलता कब ? कि चन्द्रमाके संयोगसे उसमें पानी सरने लगे तय; उसी प्रकार लक्ष्मीकी सफलता कब ? कि सत्पात्रके प्रति यह दानमें खर्च हो तब । धर्मीको ऐसा भाव होता ही है, परन्तु उसके उदाहरणसे अन्य जीवोंको समझाते हैं।
___ संसारमें लोभी जीव धनप्राप्तिके लिए कैसे-कैसे पाप करते हैं। लक्ष्मी तो पुण्यानुसार मिलती है परन्तु उसकी प्राप्तिके लिये बहुतसे जोव झूठ-चोरी आदि अनेक प्रकारके पापभाव करते हैं। कदाचित् कोई जीव ऐसे भाव न करे और प्रमाणिकतासे व्यापार करे तो भी लक्ष्मी प्राप्त करनेका भाव तो पाप ही है। यह बताकर यात ऐसा कहते हैं कि भाई, जिस लक्ष्मीके लिये तृ इतने-इतने पाप करता है और जो लक्ष्मी पुत्रादिकी अपेक्षा भी तुझे अधिक प्यारी है, उस लक्ष्मीका उत्तम उपयोग यही है कि सत्पात्रदान आदि धर्मकार्यों में उसे खर्च; सत्पात्रदानमें स्वर्ची गई लक्ष्मी मसंख्यगुणी होकर फलेगी। एक आदमी चार-पाँच हजार रु. के नये नोट लाया और घर आकर स्त्रोको दिये, उस स्त्रीने उन्हें चूलेके पास रख दिया और अन्य कामसे जरा दूर चली गई। उसका छोटा लड़का पीछ सिगड़ी के पास बैठा था। सर्दाक दिन थे, लड़केने नोटकी गड़ी उठाकर सिगड़ीमें डाल दी और अग्नि भड़क गई और वह तापने लगा.. इतने में मां आई, लड़का कहने लगा-माँ देख...मैने सिगड़ी कैसी कर दी! देखते ही माँ समझ गई कि अरे, इसने तो पाँच हजार रुपयोंकी राख कर दी! उसे ऐसा क्रोध चढ़ा कि उसने लड़केको इतना अधिक मारा कि लड़का मर गया ! देखो, पुत्रकी अपेक्षा यह धन कितना प्यारा है !!
दूसरी एक घटना-एक ग्वालिन दूध बेचकर उसके तीन रुपये लेकर अपने गाँव जा रही थी, अकालके दिन थे, रास्तेमें लुटेरे मिले। बाईको डर लगा कि ये लोग मेरे रुपये छीन लेंगे, इसलिये वह तीन रुपये-कल्दार पेटमें निगल गई। परन्तु लुटेरोंने वह देख लिया और बाईको मारकर उसके पेटमें से रुपये निकाल लिये। देखो, यह क्रूरता! ऐसे जीव दौड़कर नरक न जावें तो अन्य कहाँ जावें ? ऐसे तीन