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[भावक-प्रकार ........ [१०] ....... ज्ञानदान अथवा शास्त्रदानका वर्णन
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· कुन्दकुन्दाचार्यके जीवने पूर्वमें ग्वालेके भवमें भक्तिपूर्वक मुनिको शाख दिया था-वह उदाहरण शास्त्रदानके लिये प्रसिद्ध है। देखो, इस शानदानकी बड़ी महिमा है ! जिसने सच्चे शास्त्रकी पहचान करली है और स्वयं सम्यग्ज्ञान प्रगट किया है उसे ऐसा भाव आता है कि अहो, ऐसी जिनवाणी और ऐसी गुरुवाणीका जगतमें प्रचार हो और जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करके अपना हित करें । शानके बहुमानपूर्वक शास्त्रदान द्वारा ज्ञानका बहुत श्योपशममाव प्रगट होता है।
मानदानकी महिमा और उसका महान फल केवलशान बताते हैंव्याख्या पुस्तकदानमुअत्तधियां पाठाय भव्यात्मनां भक्त्या यक्रियते श्रताश्रयमिदं दानं तदाहुर्बुधाः । सिदेस्मिन् जननान्तरेषु कतिषु त्रैलोक्य-लोकोत्सवः
भोकारिप्रकटीकताखिल जगत् कैवल्पभाजो जनाः ॥ १० ॥
सर्पक्षदेवके कहे हुए शास्त्रोंका भक्तिपूर्वक व्याख्यान करना तथा विद्याल खुशिवाले जीवोंको स्वाध्यायहेतु पुस्तक देना उसे शानीजन शालान. या शानदान कहते हैं। ऐसे शानदानका फल क्या? तो कहते हैं कि ऐसे शानदान द्वारा भव्य जीप थोड़े ही भवोंमें, तीन लोकको मानन्दकारी तथा कल्याणकारी अर्थात् समवसरका