Book Title: Shatkhandagama Pustak 10
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ४, ४.] वेयणमहाहियारे दव्वविहाणे पदमीमांसा
[२९ सिया अजहण्णा, सिया सादिया, सिया अद्भुवा, सिया ओजा, सिया जुम्मा । एवमट्ठभंगा |८|| एसो चोद्दसमसुत्तत्थो । एदेसिं पदाणमंकविण्णासो - १३ । ५।९।५।९।१०। १२ । १२ । १० । ८।८।६।६। ८ । एत्थ गाहा
तेरस पण णव पण णव दस दोबारस दस अट्टेव ।
छच्छक्कट्ठेव तहा सामण्णपदादिपदभंगा ॥ ४ ॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥ ४॥ जहा णाणावरणीयस्स पदमीमांसा कदा तहा सेससत्तण्णं कम्माणं कायव्वा, विसेसा
कथंचित् जघन्य है, कथंचित् अजघन्य है, कथंचित् सादि है, कथंचित् अध्रुव है, कथंचित् ओज है, और कथंचित् युग्म है । इस प्रकार आठ भंग हैं | ८|। यह चौदहवें सूत्रका अर्थ है। इन पदोंका अंकविन्यास-१३।५।९।५।९।१०।१२।१२।१०।८।८।६। ६।८। यहां गाथा
तेरह, पांच, नौ, पांच, नौ, दस, दो वार बारह, दस, आठ, आठ, छह, छह तथा . आठ, ये सामान्य पद आदिके पदभंग हैं ॥४॥
इसी प्रकार सात कर्मों के उत्कृष्ट आदि पद होते हैं ॥४॥ जैसे ज्ञानावरणीय कर्मकी पदमीमांसा की है वैसे ही शेष सात कर्मोंकी करनी चाहिये, क्योंकि, इससे उसमें कोई विशेषता नहीं है।
विशेषार्थ-पदमीमांसाका अर्थ है पदोंका विचार करना। जिसमें उत्कृष्ट आदि पदोंका विचार किया जाता है उसे पदमीमांसा अनुयोगद्वार कहते हैं। प्रकृतमें मुख्यतया झानावरण कमेकी अपेक्षा उत्कृष्ट आदि तेरह पदोका विचार किया गया है। यद्यपि सूत्र कारने कुल उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य इन चार पदोंका ही निर्देश किया है। पर देशामर्षक भावसे इनके अतिरिक्त सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, ओज, युग्म, ओम, विशिष्ट और नोओम-नोविशिष्ट, ये नौ पद और लिये गये हैं। इस प्रकार कुल तेरह पद मिलाकर इनका ज्ञानावरण कर्मद्रब्यकी अपेक्षा विचार किया गया है। सर्वप्रथम तो यह बतलाया गया है कि शानावरण कर्ममें ये तेरह पद कैसे घटित होते हैं। फिर इसके बाद ज्ञानावरण कर्मको उत्कृष्ट आदि पदोंमेंसे एक एक रूप स्वीकार करके उसमें अन्य पद कहां कितने सम्भव हैं, यह बतलाया गया है और इस प्रकार इतने विवेचनके बाद अन्य सात कौकी भी इसी प्रकार प्ररूपणा करनेकी सूचना करके पदमीमांसा प्रकरण समाप्त किया गया है । अब आगे इन्हीं विशेषताओंको कोष्टक द्वारा बतलाया जाता है
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