Book Title: Shatkhandagam Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Publisher: Walchand Devchand Shah FaltanPage 11
________________ श्री. हिराचंद तलकचंद शाहका परिचय कमलेश्वर गोत्री शेठ हिराचन्द तलकचंद शहा डोरलेवाडीकरके पूर्वज ईंडर ( गुजरात ) जिलेके अन्तर्गत भिलवड़े ग्राम के रहनेवाले थे । आपके प्रपितामह ( पड़दादा ) व्यापारके निमित्त महाराष्ट्रमें आये । वे चार भाई थे रकचंद, ताराचंद, देवचंद और खेमचंद । इनमें से रकचंदके पुत्र दलचंद हुए । उनके दो पुत्र हुए- तलकचंद और मगनलाल । इनमेंसे तलकचंद के तीन पुत्र हुए- हिराचंद, माणिकचंद और मोतीचंद । इनमेंसे हिराचंद शहाने इस ग्रन्थके छपानेका भार उठाया है । आपके चार सुपुत्र हैं- चन्द्रकांत, सूर्यकांत, किरण और श्रेणिक । तथा दो सुपुत्री हैंविमला और सुरेखा । इनकी मातुश्रीका नाम रतनबाई है । उनकी आयु इस समय ७५ वर्षकी है। वे इस वृद्धावस्था में भी धार्मिक कार्यके करने में सदा तत्पर रहती हैं 1 सेठ हिराचंद के पड़दादा चारों भाइयोंने फलटणके जिनमन्दिरमें रत्नत्रय प्रभुका मन्दिर निर्माण कराया और उसकी नित्य पूजन-अर्चनके लिए ३०००) का दान दिया । सं० १९६४ में सेठ हिराचंद के पिता तलकचंदजीने बारामतीमें दुकान खोली, जिसे आज हिराचंदजी चला रहे हैं । बारामतीमें ऐलक पन्नालाल जैन पाठशालाके धौव्य फंडमें रकचंद कस्तूरचंद के स्मरणार्थ शेठ तलकचंदने १५०० ) प्रदान किये। इसी प्रकार बाहुबली ब्रह्मचर्याश्रम कुंभोजको आपने पिताजीके स्मरणार्थ एक कमरा बनवानेके लिए २५०० ) प्रदान किये । बोरीवली बम्बई में आचार्य भूतबलिकी मूर्ति-निर्माण के लिए आपने १०००) प्रदान किये । तथा ५००) सेठ तलकचंद के नामसे प्रदान किये हैं । आपने बाहुबली स्वामीकी मूर्तिके निर्माणार्थ १०००) दिये हैं । इस प्रकार आप निरन्तर धर्मार्थ दान करनेमें तत्पर रहते हैं । इसके सिवाय धवल ग्रन्थके ताम्रपटके लिए तलकचंद दलचंद शहा और हिराचंद तलकचंद शहा इनके नामसे भी आपने २००२) प्रदान किये हैं । 1 सं. २०११ में जब आ० शान्तिसागर महाराज लोणंद में विराजमान थे, तब महाराजके उपदेश से प्रभावित होकर शेठ हिराचंदने धवल ग्रन्थको मूल सूत्र व हिन्दी अनुवादके साथ छपानेक लिए ४००१) प्रदान किये थे, यह आचार्य महाराजके आशीर्वादका ही फल है । शेठ हिराचंद के पिता श्री शेठ तलकचंदजी बहुत धैर्यवान्, नीतिमान् और योग्य सलाह देनेवाले थे । सं. २०१९ के पौष मासमें आपने बारामतीमें सल्लेखना धारण की और पंचपरमेष्टीका स्मरण करते हुए देहका परित्याग कर स्वर्गवासी हुए । शेठ हिराचंद की तृतीय पत्नी हीरामती भी अपने पतिके समान धर्म कार्य करनेमें और गुरु-सेवा में सदा तत्पर रहती हैं । इस प्रकार आपका सारा परिवार धर्मपरायण है । हम आपके परिवारकी मंगल कामना करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रकाशक www.jainelibrary.orgPage Navigation
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