Book Title: Shatkhandagam
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, 
Publisher: Walchand Devchand Shah Faltan

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Page 9
________________ ( ४ ) ( २ ) श्री धवल ग्रन्थके ताम्रपत्र तथा अन्य छपे ग्रन्थोंकी छपी हुई प्रतियोंकी सुरक्षा तथा ज्ञानदान के योग्य प्रबन्धका कार्य होवे । ( ३ ) इन दोनों उद्देश्योंकी पूर्ति के लिए योग्य और अच्छे भवनका प्रबन्ध । ( ४ ) आगम-ग्रन्थोंके स्वाध्यायके लिए प्रचलित भाषाओं में अनुवाद-सहित मूल गाथा - सूत्रों के साथ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ छपानेका और ज्ञानदानका साक्षात् प्रबन्ध करना । उक्त उद्देश्योंकी पूर्ति के लिए इस अवधि में जो कार्य हुआ है, वह समाजके सम्मुख है । ज्ञानदान के शुद्ध ध्येयको दृष्टिमें रखकर जो ग्रन्थरत्न मुद्रित होकर वितरण करनेके लिए तैयार हो गये हैं, उनकी सूची तथा केवल छपाईमें लगे हुए खर्च के लिए जिन्होंने दान दिया है उनके शुभ नाम इस प्रकार हैं ग्रन्थ-नाम १ श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार २ श्री समयसार ३ श्री सर्वार्थसिद्धि ४ श्री मूलाचार ५ श्री उत्तरपुराण ६ श्री अनगारधर्मामृत ७ श्री सागारधर्मामृत ८ श्री धवल ग्रन्थराज Jain Education International दातार - नाम श्री गंगाराम कामचंद दोशी, फलटण श्री हिराचंद केवलचंद दोशी, फलटण श्री शिवलाल माणिकचंद कोठारी, बुध श्री गुलाबचंद जीवन गांधी, दहिवडी श्री जीवराज खुशालचंद गांधी, फलटण श्री चंदूलाल कस्तूरचंद, मुंबई श्री पद्मराज वैद्य, निमगांव श्री हिराचंद तलकचंद, बारामती आचार्य महाराजके संकेत और आज्ञानुसार सब ग्रन्थोंके लिए कागज संस्थाकी ओर से दिया गया है । ग्रन्थोंका वितरण प्रत्येक शहर तथा ग्राममें जहां पर दि. जैन भाई और दि. जिनमन्दिर विद्यमान हैं, वहां पर प्रत्येक ग्रन्थकी एक एक प्रति पहुंचे, ऐसी योजना की गई है । संस्थाके सभी सदस्यों को भी एक एक प्रति विना मूल्य दी जाती है । I समाज के जिन श्रीमानोंका संस्थाकी स्थापना और विकासमें हमें आर्थिक सहयोग प्राप्त है और जिसके कारण संस्थाके द्वारा महान् कार्य हो रहे हैं, तथा जो आचार्य महाराजकी अमूर्त आज्ञाको साकार एवं कार्यान्वित करनेमें प्रधान कारण हैं ऐसे उन सभी श्रीमानों और उदारतापूर्वक ग्रन्थों की छपाई आदिमें आर्थिक सहायता पहुंचानेवाले दातारोंको उनके धर्म-प्रेमके लिए हार्दिक धन्यवाद है । आशा है कि समाज के अन्य दानी धर्म-प्रेमी महानुभाव इस परम पवित्र विश्व-पावनी जिनवाणीके प्रसारके महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए सक्रिय सहयोग देकर और अपनी उदारता प्रकट कर महान् पुण्यका संचय करेंगे, ताकि संस्थाका कार्य उत्तरोत्तर वृद्धिंगत होता रहे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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