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आज आचार्यश्री हमारे सामने नहीं हैं, तथापि उनकी पवित्र आज्ञाको शिरोधार्य कर हम जितना कार्य उनके सम्मुख कर सके थे, उससे उन्होंने परम सन्तोषका अनुभव अपने सल्लेखनाकालमें किया था और उनकी ही आज्ञा और इच्छाके अनुसार हम भगवान् पुष्पदन्त और भूतबलि विरचित षट्खण्डागमको हिन्दी अनुवादके साथ मूलरूपमें पाठकोंके कर-कमलोंमें स्वाध्यायार्थ भेंट करते हुए परम हर्षका अनुभव कर रहे हैं।
आचार्यश्री प्रशान्तचित्त. गाढ तपस्वी, जिनधर्म-प्रभावक, श्रेयोमार्ग-प्रवर्तक, बालब्रह्मचारी और जगदहितैषी थे । उनके द्वारा इस परमागमरूपिणी भगवती जिनवाणी माताके ग्रन्थरूप द्रव्यशरीरका जीर्णोद्धार और प्रसाररूप महान् कार्य हुआ है। ऐसे महान् आचार्यके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेकी किचिदपि शक्ति समाजके लिए किसी भी शब्द या अर्थमें नहीं है । सच्ची कृतज्ञता तो उनके उपदेश और आदेशके अनुसार धर्ममें प्रगाढ श्रद्धा, चारित्रमें अचल निष्ठा, स्वाध्याय
और आत्म-चिन्तनमें प्रवृत्ति तथा तदनुकूल आचरण-द्वारा ही व्यक्त की जा सकती है। स्वर्गीय परम श्रद्धेय आचार्यश्रीके विना इस महान् कार्यका प्रारम्भ होना असम्भव था । यह सब कार्य उनके असाधारण उपदेश, आदेश, मार्ग-दर्शन और सतत प्रेरणाका सुफल है । हम परम श्रद्धा और भक्ति-भावसे उनका स्मरण करते हुए उन्हें परोक्ष होने पर भी प्रत्यक्षवत् शत-शत वन्दन करते हैं और सद्भाव करते हैं कि सद्धर्म-प्रसारकी भावना-पूर्तिके लिए सर्व जैन समाजके साथ हम लोग सतत सावधान जौर जागरूक रहें ।
दर्श दर्श सूरिशान्तस्वरूपं पायं पायं वाक्यपीयूषधारम् । स्मारं स्मारं तद्-गुणान् स्पृष्टपादाः जाताः शान्ताः साधवोऽक्षेष्वरक्ताः ।।
फाल्गुन शुक्ला ११ वीर सं. २४९० दि. २३-२--६४. अध्यक्ष- श्री १०५ जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी मठाधीश
वालचंद देवचंद शहा . मंत्री- 'प. पू. चा. च. श्री १०८ आचार्य
शान्तिसागर दि. जैन जि. जीर्णोद्धारक संस्था '
___माणिकचंद मलुकचंद दोशी मंत्री- ' श्रुतभाण्डार व ग्रन्थप्रकाशन समिति
फलटण.'
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