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तत्पश्चात् वीर सं. २ ४७१ के फाल्गुन मासमें आचार्यश्रीके बारामती पदार्पण करनेपर उक्त संस्थाकी नियमावली बनवाकर कानूनके अनुसार रजिष्ट्री करा दी गई । अधिकारी व अनुभवी विद्वानोंकी देख-रेखमें तीनों सिद्धान्तग्रन्थोंको ताम्रपत्रोंपर उत्कीर्ण कराया गया । उत्कीर्ण ताम्रपत्रोंका • आकार ८x१३ इंच है। तीनों सिद्धान्तग्रन्योंके ताम्रपत्रोंकी संख्या २६६४ है, जिनका वजन लगभग ५० मन है। साथ ही साथ तीनों ग्रन्थोंकी पांच-पांच सौ प्रतियां भी मुद्रित करायी गई हैं, जिनका उपयोग अधिकारी विद्वान् और स्वाध्याय प्रेमी पाठक चिरकाल तक करते रहेंगे। ऐसा महान् कार्य जैन समाजमें तो क्या, अन्य भारतीय या विदेशीय समाजमें भी अभी तक नहीं हुआ है।
__उपर्युक्त तीनों सिद्धान्तग्रन्थ हिन्दी अनुवाद के साथ विभिन्न संस्थाओंसे प्रकाशित हो चुके हैं, और प्रस्तुत ग्रन्थ षट्खण्डागम हिन्दी अनुवादके साथ अपने मूल रूपमें पाठकोंके समक्ष उपस्थित है, जिसकी प्रस्तावनामें इन ग्रन्थराजोंका परिचय दिया ही गया है, अतः उसे यहां देना पुनरुक्त ही होगा।
वीर सं० २४८० में आचार्यश्रीका चातुर्मास फलटणमें हुआ था। इस समय आचार्यश्रीन आगमसंरक्षण और ज्ञानदानकी एक रचनात्मक योजना समाजके सामने रखी । फलस्वरूप ताम्रपत्रोत्कीर्ण ग्रन्थराजोंकी सुरक्षाके लिए श्री १००८ चन्द्रप्रभके मंदिरजीमें आचार्यश्रीके हीरकमहोत्सवके समय संकलित निधिमेंसे बचे हुए करीब बीस हजार रुपयोंसे नया भवन बनवाया गया, जिसमें यह समस्त श्रुतनिधि अत्यन्त सुरक्षित रूपसे रखी गई है।
सल्लेखना अंगीकार करते ही आचार्यश्रीके उपदेशोंमें एक महान् परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगा । अब तक आचार्यश्री गृहस्थोंके कल्याणके लिए जिनबिंब, जिनागार और पूजादि पुण्यकार्यके लिए अधिकतर उपदेश देते थे। किन्तु अब आपने अनुभव किया कि शास्त्र-स्वाध्यायके विना धर्म-श्रद्धान दृढ़ नहीं रहेगा और शास्त्रोंकी सुलभताके विना स्वाध्याय नहीं हो सकेगा, अतः प्रत्येक ग्रामके जिनमंदिरोंमें आगमोंकी सुलभता होनी चाहिए। स्वाध्यायके साधनभूत शास्त्र यदि सानुवाद हों, तो जनताको भारी लाभ होगा। अतः स्वाध्यायप्रेमियोंको शास्त्र विना मूल्य मिलना चाहिए । आचार्यश्रीके उक्त उद्गारोंसे प्रेरणा पाकर फलटण-निवासी दि. जैन समाजने पूर्व संस्थापित प. पू. चा. च. श्री १०८ आ. शान्तिसागर दि. जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्थासे प्रमाणित श्रुतभाण्डार और ग्रन्थप्रकाशन-समितिकी स्थापना की। इस संस्थाके निर्माणमें तथा विकासकार्यमें फलटणके सभी भाइयोंने उत्साहपूर्वक सहयोग दिया । जिन उद्देश्योंको लेकर यह संस्था स्थापित हुई, वे इस प्रकार हैं
(१) प्राचीन तथा जीर्णोद्धार किये गये श्री धवलादि ग्रन्थराज इस संस्थाके द्वारा सुरक्षित रक्खे जाय और उनकी सुरक्षाका कार्य निरन्तर फलटण-वासियोंकी ओरसे उन्हींकी जिम्मेदारीपर किया जाय ।
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