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संख्या १ ]
हमारे प्रान्त के विश्वविद्यालयों में पाली भाषा का अध्ययन
हमारे विश्वविद्यालयों, इण्टर कालेजों तथा हाईस्कूलों में संस्कृत पढ़नेवाले छात्रों की संख्या दिनप्रति-दिन घटती जा रही है । संस्कृत भाषा के प्रति बढ़नेवाली उदासीनता के कारण हमारे युवकों में भारतीय संस्कृति के प्रति न केवल उदासीनता किन्तु घृणा भी जोरों से फैल रही है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब जब हम लोगों ने अपनी संस्कृति के ठुकराकर दूसरी संस्कृति को अपनाने का प्रयत्न किया है तब तब लाभ के बजाय सदैव हानि ही हुई है। इसलिए भी यह आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति को समझाने में सहायक संस्कृत-भाषा के अध्ययन के औदासिन्य को दूर करने के लिए पाली भाषा का आश्रय हम लोगों को लेना चाहिए ।
पाली (पल्लम् - ग्राम) ग्रामीण भाषा है, जिसे बौद्ध काल में संस्कृत साहित्यिक रूप प्राप्त हुआ था । इसके अध्ययन में विशेष सरलता भी है। मैं यह अनुभव से जानता हूँ कि मेरे साथ पढ़नेवाले एक भाई ने नवीं कक्षा तक द्वितीय भाषा संस्कृत ली थी, पर उसमें वह नवीं कक्षा में जाकर फेल हो गया । मैट्रिक क्लास में उसने अपनी द्वितीय भाषा संस्कृत से बदल कर पाली ले ली और कोचिंग क्लास में जाकर पढ़ी। एक वर्ष में ही उसने उसमें इतनी योग्यता प्राप्त कर ली कि वह द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ । इससे यह स्पष्ट है कि जो छात्र आज संस्कृत को केवल कठिन समझकर छोड़ रहे हैं वे छात्र इस सरल पाली भाषा को प्रसन्नता से द्वितीय भाषा के तौर पर चुन सकेंगे। हिन्दी से उसका पुराना सम्बन्ध होने के कारण भी इस प्रान्त के युवक उसके अध्ययन में एक विशेष प्रकार के रस का अनुभव करेंगे। साथ ही वे इस बात का भी अनुभव करेंगे कि भगवान बुद्धदेव ने प्राकृत जन भाषा पाली को अपनाकर राष्ट्रभाषाप्रचार का पाठ हमें किस प्रकार आज भी पढ़ा रहे हैं।
युग-प्रभाव से कहिए या यंत्रयुग के कारण बढ़ने बाले भौतिक सुख के कारण कहिए, इस समय नव
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युवक ईश्वरवाद को जनता को नशा में डालनेवाली अफ़ीम की तरह मान रहे हैं। उनकी इस निराशापूर्ण अवस्था से हम इतना तो अवश्य जान सकते हैं कि बाहर से ईश्वर को मानकर भी भौतिक सुख प्राप्त करने के लिए दुर्बलों को लूटने-खसोटने में जरा भी संकोच न करनेवाले पण्डे-पुजारियों और महन्तों के अन्यायपूर्ण व्यवहार के कारण ही ईश्वर के प्रति यह श्रद्धा बढ़ रही है। रूस का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिन धर्माचार्यों ने ज़ार के जघन्य शासन की निन्दा न करके उसका समर्थन करने में ही अपनी वाणी तथा क़लम का उपयोग किया उन्हीं आचार्यों के कारण रूस में ईसाई धर्म को गहरा धक्का पहुँचा है। इसके यह माने नहीं है कि रूसवाले दुर्बलों
प्रति सक्रिय सहानुभूति रखनेवाले धर्म को नहीं चाहते । रूस के विद्वान बौद्धधर्म के अध्ययन की ओर विशेष रूप से लग रहे हैं । मास्को में बौद्धधर्म के अध्ययन के लिए एक संस्था विशेष रूप से प्रयत्न कर रही है। इससे हम यह समझ सकेंगे कि हमारे देश में फैलनेवाले धर्म के प्रति निराशा को दूर करने में हमको इस पाली और तद् द्वारा बौद्धधर्म के अध्ययन से कितनी सहायता मिलेगी ।
हिन्दू तथा बौद्धधर्म का जो प्राचीन संबंध है उसका जीर्णोद्धार करने में पाली भाषा के प्रचार से विशेष सहायता मिलेगी ।
इन सब बातों की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित करते हुए मैं शिक्षाप्रेमियों, शिक्षा-संस्थाओं के अधिकारियों तथा इण्टर बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों के अधिकारियों से साग्रह निवेदन करता हूँ कि वे इस महत्त्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान देकर शीघ्र से शीघ्र अपनी अपनी संस्थाओं के अभ्यासक्रम में पाली भाषा को भी स्थान देने की व्यवस्था कर दें । सम्पादकगण तथा अन्य लेखकवर्ग भी इस विषय पर अपने अपने विचार प्रकट करके इस आन्दोलन में हमारा हाथ बँटावें ।
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