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सम्यक विचार' रख दिया है। पाठकों को प्रतीत होगा कि अनुवादक अपनी रचना में मूल ग्रन्थों के पाठ का उल्लंघन कर गये हैं, किन्तु यदि वे शान्त हृदय से विचार करेंगे तो उन्हें यह विश्वास उत्पन्न होने में देर नहीं लगेगी कि अनुवादक ने उल्लंघन 'शब्दरचना मात्र' में ही किया है और वह इसीलिये कि जो गूढ़ तत्व मूल ग्रन्थ की वाणी में सूक्ष्मता सूत्र रूप में अन्तर्हित सुस्पष्टता से आज की सरल और चित्ताकर्षक भाषा-शैली में उतर आवें ।
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मैंने जहां तक नई रचना का मूल पाठ से मिलान करके देखा है वहां तक मुझे तो सन्तोष हुआ है कि अनुवादक ने अपने कवि कर्तव्यों को निबाहते हुए बड़े प्रयत्न और सावधानी से मूजाथ को ही सुस्पष्ट करने का उद्योग किया है ।
यों तो प्राचीन आचायों की वाणी अपने रूप में अद्वितीय है और कोई भी उनका सच्चा सर्वाग सम्पूर्ण अनुवाद प्रस्तुत करने में सोलहों आने सफल होने का दावा नहीं कर सकता, किन्तु चंचल जी का यह प्रयास उचित रूप से उचित दिशा में हुआ है जिसके द्वारा इन प्राचीन रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में बड़ी सहायता मिलने की आशा की जा सकती है । इस दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ के रचयिता व प्रकाशक अभिनन्दनीय हैं ।
मुजफ्फरपुर ( बिहार ) २४-४-१६४७ ई०
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- हीरालाल जैन ।