Book Title: Sambodhi 1984 Vol 13 and 14
Author(s): Dalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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अरविन्द कुमार सिंह
अनुवाद
१. जिनका आठ आँखोंवाले ब्रह्मा स्मरण करते हैं, बारह आँखोंवाले कुमार (कार्तिकेय) भजन
करते हैं, सहस्राक्ष इन्द्र जिन्हें प्रणाम करते हैं, और उससे भी दुगुने आँखोंवाले शेषनाग जिनकी स्तुति करते हैं तथा जो प्रेम के कारण परवश कामिनीयों के लाखों भाँखों का लक्ष्य है, ऐसे (शिव) विरूपाक्ष सज्जनों के धुरे कर्मों को शीघ्र नष्ट करें।
२. (भगवान् विरूपाक्ष की) ललाटस्थित आँख की ज्वाला से जले हुए शरीरवाले
पुष्पधन्वा द्वारा उनकी विशाल बायें नेत्र रूप अमृतवापी में प्रवेश करते हुए, उसके मानो अध तट पर ही भुकटी के व्याज से धनुष छेड़ दिया गया, ऐसे अर्धनारी विरूपाक्ष की जय हो।
३. भाप ही के प्रभाव से जमदग्निपुत्र राम (परशुराम)ने समस्त क्षत्रियों का समापन
किया, जिससे मात्स्यन्याय होने पर शीघ्र ही पृथ्वी द्वारा 'मेरा कोई' रक्षक उत्पन्न करो' इस प्रकार चन्द्रमोलि से प्रार्थना की गई। शीघ्र ही वहीं सध्याविधि के चुल्लु (अंजलि)
के पानी में एक वीर प्रकट हुआ । ४. उसी चुलुक राजा से महान वश चला, जिसने पृथ्वी को पादाक्रान्त किया तथा
ब्राह्मणों के समुदाय द्वारा जिसको पल उपभोग किया गया । उस वंश में, विख्यात गुणीजनों की भांति नीतिविद्या में कुशल, निर्दोष तथा अत्यन्त पराक्रमी 'मूलराज' नामक राजा उत्पन्न हुआ।
१. जिसकी चरणपीठ सीमान्त राजाओं के झुके हुए मस्तकों के स्पर्श से रेखांकित होने
के करण ऐसा मालूम पड़ रहा था कि मानो कीर्तिरूपी वधू के प्रवेश के लिए चतुष्क (चौक) हो । उसका पुत्र 'चामुण्डराज' हुआ, जो कामुक होने पर भी शत्र राजाओं के समूह की राजलक्ष्मो को छीनकर निरन्तर उसका सेवन करता था, परन्तु सच्चरित्र होने के कारण उनकी स्त्रियों को दूर ही रखता था ।
८. उससे पृथ्वी पर 'वल्लभराज' नाम का राजा उत्पन्न हुआ, जिसने अपने गुणों से
इस पृथ्वी के सज्जनों और शत्र-स्त्रियों को बन्दी बना लिया ( महित कर लिया)।
तत्पश्चात् उसके भाई 'दुल भरान' ने अत्यन्त दृढ़तापूर्वक पृथ्वी पर राज्य किया, मानो महावराह की प्रचण्ड दाद से तुलनीय भुवाओं से पृथ्वी को धारण किया हो । शन्न राजाओं के नगरों के बड़े राजमहालयों में की गई अलंकार-शोभा मानो उस राजा की कीर्ति का वर्णन करने वाली गहरी खुदी हुई कीर्ति की वर्णावली (अक्षर)।