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अवलोकन
तिङ:-अत्यन्तापहवे (वा) किं कलिङ्गेषु स्थितोऽसि ? नाहं कलिङ्गान् जगास । (III-2-115) तिङ :-भूतानद्यतनपरोक्षे इति ह चसार । शश्वञ्च फार (III-2-116). अत्र विषये लङ अपि भवति । ति:-प्रश्ने चासन्न काले-लिद लङ च । कश्चित् कंचित् पृच्छति मियजत् देवदत्तः ? तस्योत्तरम्-अनयत् देवदत्तः ! झ्याच देवदतः ! (III-2-117) तिङ :-परस्मैपदि प्रत्ययाः लिटि तुसु" (JII-4-82). तिङ :-लिटि परतः घातोरभ्यासः । लिटि धातोः । (VI-1-8) लिटि परे अभ्यासभिन्नस्य एकाकस्य प्रथमस्य धात्ववयवस्य द्वे उच्चारणे स्त; । भत्र एकाच इति कर्मधारयः । तिङ :-लिटि कास् धात: प्रत्ययात् अन्येभ्यश्च धातुभ्यश्च आम् प्रत्ययो भवति बोभूयाञ्चकार (III-1-35, 42)."
इस तरह से यहाँ जो भी स्वनिम या रूपिम के रूप में प्रस्तुत किया है उन सभी का पाणिनीय व्याकरण में प्रस्तुत किया है उन सभी का पाणिनीय
व्याकरण में क्या स्थान, स्वरूप, कार्यादि है (जैसे कि- वह संज्ञावाचक है, प्रत्याहार है, अनुबन्ध है, स्थानि या आदेश है, आगम है, प्रत्यय है, उणादि प्रत्यय है. निपातन है इत्यादि) उसका सबांगीण निरुपण एकत्र किया गया है । और साथ में पाणिनीय आटाध्यायी के सूत्र क्रमांक या वार्तिकादिका पूरा सन्दर्भ बताया गया हैं । अनः जिज्ञासु अल्प परिश्रम के साथ ही प्रत्ययादि का ज्ञान प्राप्त कर सकेगा ।
"आधुनिक युग में जो संस्कृतानुरागी विदुज्जन संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन का भार कम्प्युटर में यन्त्रस्थ करना चाहते है, उनके लिए यह कोश निविषाद एवं अनुपम का से सहायक हो सकेगा ऐसा नम्र अभिप्राय है । और भी जो पाठक किसी एक स्वतन्त्र प्रत्ययादि को लेकर उसका पूरे पाणिनग्य व्याकरणशास्त्र में क्या क्या स्थानादि है वह यदि देखना चाहता है, तो उस को भी यह कोश मार्गदर्शक बन सकता है।
इस प्रत्ययकोश'के गुणमहिमा को बताने के बाद, उन की कुछ अपूर्णता के प्रति भी भ्यान आकृष्ट करना चाहिए । १. 'आई शीर्षक के नीचे (पृ44 उपर) “भाइ इति टासंज्ञा प्राचाम् ।" (आढो नास्त्रियाम् । (VII-3-120) तृतीया विभक्ति के एकवचन के (टा) प्रत्यय के लिए पाणिनिने “आइ." का उल्लेख किया है -- ऐसा निदेश अनिवार्य है। २. "इत" शीर्षक के नीचे ( 55 उपर) “इत्" एक पारिभाषिक संज्ञा है, और "उपदेशेऽजनुनासिक इत् । ([-3-2 to 8) सूत्रों से उसका विधान किया गया है। यह बताना आवश्यक है । ३ सुप् विभक्ति प्रत्यय विभिन्न कार काथर्थो के वाचक हैं, यह बताना परमावश्यक था, जो नहीं बताया है । ४. पृष्ठ 77 पर 'ल' शीर्षक के नीचे लिया