Book Title: Sambodhi 1984 Vol 13 and 14
Author(s): Dalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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श्रीजिनकीर्तिसूरिकृत
आगामी हवो वर्तमान एहवा बली मोटो स्कंधादिक तथा अणुपरमाण्वादिक पिण भावराशिद्रव्य पर्याय समूह समस्त सघलोय जे भगवंतना ज्ञानमांहि तुल्यकाल क० समयस्य प्रतिबिंबित थाय छे जे प्रकारे द्रव्यपर्यायनी पोतानी स्वरूपव्यवस्था क० प्रवर्तन छई || १ || ऐ संस्कृत भाषामां छे ||
जेणे भरतक्षेत्र विषे सीघ्र वायु रूडा धर्म्मनु बीज तिम एक श्री ऋषमजी तेणें पण तिम प्रशांतहृदय हवे ते पु'डरीकगणधरे' करयो छे । वली जे ऋषभदेवजी अष्टापद पर्वत पीठ विषे रूडी रीतें थाप्यु छे शरीर जेणें एहो थके। पाम्या छे' पर क० उत्कृष्ट निरृति प्र देव २४ मध्ये पहला पहवा अपूर्व प्रभरूप ते
प्रते भक्तीये करीने बांदु धुं ते प्रते ||२|| प्राकृत भाषा ||
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जा जोईदणरिंदबंदिदपदो तेलुकचिदामणी
जं आलिंगंदि रागसंग दिदी सामुत्तिलीलाबदी ।
जादा rिogदिदीविया गमला विज्जापसूदी जदो
सो सामी रिहा जिर्णदवसहो दिज्जा सुविज्जा सुहं ॥ ३ ॥ शौरसेनी । ।
1 B Onits 2 बर्दिद C 3 तिलुक्क 4 संगदि C 5 मुदी A 6दो B. 7 जिणं दC 8 B Omits
अवचूरि-योगीन्द्रनरेन्द्र वंदितपद 'सौले क्यचिंतामणिः ॥ यं ॥ आलिंगति
राग संगतिमती || मुक्तिलीलावती || जाता: निर्वृतिदीपिका ॥ गतमला ॥ विधाप्रसूतिः ॥ यः ॥ देयात् सुविधासुखं । अनंतज्ञानानंदरूपं ॥ तो दोsनादो शौरसेन्यामसंयुक्तस्येति सूत्रेण सर्वत्रानादितकाराणामसंयुक्तानां दकाराः ॥ riesfaदिति सूत्रेण चिदामणीत्यत्र संयुक्तास्यापि तस्य दः ||३
9 नरेन्द्र च B. 10 पदा B. 11 राभ B.
स्तक जे प्रभु जोगीन्द्रनरेन्द्र तेउणाये वांया छे पद जेहनां एहवा ऋषभप्रभु छे (यः द्र नरेन्द्रवंदित पद ) त्रव्य लेाकने विषे चितामणी रत्न के मनोवांछित पूरनारा जे प्रभुजी प्रते आलिंगन करे छे एही रागे करीने संगति के मति क० मलती थकी एही ते मुक्तिरूपिणी लीलावती स्त्री जेहनें भालिंगन करे छे वली जाता केह० प्रगट थई छे निर्वृति क० मोक्षरूपिणी दीदी गतमाला क० मलरहित एही विद्याप्रसूति में ते यतः क० जे प्रभु थकी ते स्वामी ऋषभदेवजी जिर्णेद्र मध्ये वृषभ समनि जे. ते देवात् क० भावजा सुविधाना सुख प्रते सुविधा ते अनंतज्ञानानंदमय सुख कहीये ॥३॥ ए शौरसेनी भाषा है।