Book Title: Sambodhi 1984 Vol 13 and 14
Author(s): Dalsukh Malvania, Ramesh S Betai, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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रूपेन्द्रकुमार पगारिया
होती । साथ ही श्रावक को प्रातः तथा संभ्या के समय ही सामायिक करनी चाहिए दो से भषिक बार श्रावक को सामायिक नहीं करनी चाहिए ।
कुछ लोग श्रावक को सूत्र पढने या पढाने का निषेध करते थे। शतपदीकार ने विषय में थोडी छट देते हुए कहा "श्रावक आवश्यक नियुक्ति, चूगि तथा सूत्रों के अलापक पद सकता है। साधु भी श्रावक को मर्यादित एवं उनके उपयोगी शास्त्र पढ़ा सकता है।"
आवश्यकचणि में बलायी गई विधि के अनुसार ही श्रावक को षडावश्यक करना चाहिए।
साधु के उपाश्रय में स्त्रियों को खडे खडे ही वन्दन करना चाहिए । साधु के उपाश्रय में स्त्रियों को बैठना या घुटने टेक कर वन्दन करना शास्त्र विरुद्ध है ।
मूर्ति को वन्दन एक खमासमन से भी हो सकता है। श्रावक द्वादशावर्त रुपवन्दन सामान्य साधु को भी कर सकता है।
प्रायश्चित का विधान साधु के लिए ही है यह कथन उचित नहीं । श्रावक भी साधु की तरह अपने पापों का प्रायश्चित कर सकता है।
पर्वतिथिविषयकधिचार
तीर्थकरों के जन्म, च्यवन, दीक्षा, ज्ञान एवं निर्वाणकल्याणक नहीं मनाने चाहिए । जो जिनकल्याणक मनाते हैं वे शास्त्र विरुद्ध करते हैं।
भामोज और चैत्र मास के अध्याहिका पवन मनाये जाय । सांवत्सरिक प्रतिक्रमण आषाढी पूर्णिमा से 50 वे दिन ही करना चाहिए ।
चातुर्मास विहार पूर्णिमा के दिन ही करना चाहिए तथा पूर्णिमा को ही पक्खी माननी चाहिए । चतुदशी को नहीं ।।
लौकिक पंचांग नहीं मानना चाहिए। क्योंकि लौकिक पंचांग में जैन सिद्धान्त के विरूद्ध भनेक बाते आती हैं।
भधिक मास पौष या अषाढ को ही मानना चाहिए । अधिक मास में वीसापजूषण अर्थात् भाद्रपदसुद 5 के दिन ही संवत्सरि पर्व मनाया जाय । साधु के चार विषयक अपवाद
साधु को बांस का ही दण्डा रखना चाहिए ऐसा एकान्त नियम नहीं है काष्ठ का भी रखा जा सकता है।
साधु को पर्व के दिनों में ही चैत्यबन्दन करना चाहिए । प्रतिदिन बन्दन के लिए वैश्य में जाने की आवश्यकता नहीं है।
साधु को द्रव्य स्तव करने या करवाने का शास्त्र में निषेध है। जिन भगवान के सामने नाटक. गीत नृत्य आदि करवाना द्रव्य स्तव है । अर्थात् द्रव्य स्तव साधु को त्रिविध त्रिविध रूप से नहीं करना चाहिए।
साधु को चैत्यवन्दना तीन श्लोकवाली स्तुति से ही करनी चाहिए। क्योंकि साधु मलमलीन एवं अस्नात होते हैं अतः अल्प स्तुति करके उसे तुरत चैत्य से निकल जाना चाहिए । साधु को चैत्यवन्दन में कृत्रिम स्तुति अर्थात आधुनिक साधुओं के द्वारा बनाई गई स्तुतियों नहीं बोलनी चाहिए ।