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( १६ ) के कई पत्र नहीं मिले, उनमें और भी होंगे। इसी तरह जिनसागरसूरि का गीत संग्रह आदि विविध प्रकार के अनेक सङ्कलनसंग्रह मिले हैं।
इस प्रकार और भी कई छोटे-बड़े संकलन कवि के स्वयं लिखित या उनकी प्रतिलिपि किये हुये प्राप्त हैं। हमें ये सङ्कलन
आहिस्ता-आहिस्ता मिलते गए और कइयों की प्रतियां तो अधूरी ही मिली हैं । इसलिये बहुत से गीत अभी और मिलेंगे और कई जो त्रुटित रूप में अपूर्ण मिले हैं, उनकी भी अन्य प्रतियां प्राप्त होनी आवश्यक हैं। हमने उनको पूर्ण करने के लिए बहुत प्रयत्न किया। पचास प्रतियां व सैंकड़ों फुटकर पत्र देखे,पर जिनकी अन्य प्रति नहीं मिली उन्हें जिस रूप में मिले उसी रूप में छपाने पड़े हैं।
अब हम इस संग्रह में प्रकाशित जिन रचनाओं में कुछ पाठ टित रह गये हैं। उनकी सूची नीचे दे रहे हैं, जिससे उन रचनाओं को किसी को पूरी प्रति प्राप्त हो तो वे पूर्ति के पाठ को लिख भेजें। पृ० १६ 'चौवीस जिन सवैया' के ७ वें पद्य का प्रारंभिक अंश। , १७ , , , ८ वें पद्य का मध्यवर्ती अंश । ,, २२ 'ऐरवतक्षेत्र चतुर्विंशति गीतानि' के प्रारंभिक सात जिनगीत , १०४ पाटण शांतिनाथ स्तवन' की प्रारम्भिक १६ गाथाएँ। ,, १२६ नेमिनाथ गीत' की प्रथम पद्य के बाद की गाथाएँ । ,, १३३ 'नेमिनाथ सवैया' के प्रारम्भिक ८॥ सवैये। १३६ .. ,, पद्यांक १६ में इस प्रकार छपने से रह
गया है'विजुरी विचई डरावइ सखि मोहि नींद नावइ,
कृपाल कुको कहावइ श्रेकु अरदास रे।' , १४२ 'नेमिनाथ सवैया' के पिछले २॥ सवैये ।
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