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प्राप्त हुई है। उसके अन्त में जो सूची दी गई है, उसमें से तीन गीत तो अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं--१. मोरा जीवनजी, २. जपउ पञ्च परमेष्टी परभाति जापं, ३. मरण पगा माहि नित वहइ ।
सांझी गीत पचीसी-इसी तरह सांझी गीतों का एक संग्रह तैयार किया गया, जिसकी एक प्रति पालनपुर भण्डार में इलादुर्ग में स्वयं की लिखी हुई सात पत्रों की मिली, जिसमें २१ सांझी गीत थे। इसके बाद वीदासर के यति गणेशलालजी के संग्रह में दूसरी प्रति मिली, जिसमें चार गीत और जोड़कर गीतों की संख्या २५ की करदी गई है। इसलिये हमारे इस ग्रन्थ के पृष्ठ ४६३ में सांझी गीतों का कलश रूप जो गीत छपा है, उसके अन्तिम पद्य में 'सांझी गीत मुहावणा ए, मैं गाया इकवीस' छपा है। यहां दूसरी प्रति में २१ के स्थान पचवीस' का पाठ मिलता है।
रात्रिजागरण गीत पंचास-इसमें धार्मिक उत्सवों के समय रात्रिजागरण करने की जो प्रणाली थी, उसमें गाये जाने योग्य ५० गीतों का संकलन कवि ने किया है। जिसका अंतिम कलश-गीत इसी ग्रन्थ के पृ० ४६३ में छपा है। इसकी स्वयं की लिखित प्रति हमारे संग्रह में है, जिसमें ४६ गीत हैं।
७ भास शतकम-इसमें भास संज्ञावाली एक सौ रचनाओं का संकलन है । सं० १६६७ अहमदाबाद में स्वयं की लिखी हुई २६ पत्रों की प्रति महोपाध्याय विनयसागरजी को प्राप्त हुई। इसका प्रथम पत्र नहीं मिला है।
साधु गीतानि-इसमें मुनियों की जीवनी सम्बन्धी गीतों का संकलन किया गया है। इसकी भी स्वयं लिखित दो प्रतियां और अन्य लिखित कई प्रतियां मिली हैं। जिनमें एक के तो मध्य पत्र ही मिले हैं। उनमें संख्या २१ से ५१ तक के गीत ही मिले हैं।
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