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Verse 16
मत्तश्च्युत्वेन्द्रियद्वारैः पतितो विषयेष्वहम् । तान् प्रपद्याऽहमिति मां पुरा वेद न तत्त्वतः ॥१६॥
अन्वयार्थ - (अहं) मैं (पुरा) अनादिकाल से (मत्तः) आत्मस्वरूप से (च्युत्वा) च्युत होकर (इन्द्रियद्वारैः) इन्द्रियों के द्वारा (विषयेषु ) विषयों में (पतितः) पतित हुआ हूँ - अत्यासक्ति से प्रवृत्त हुआ हूँ (ततः) इस कारण (तान् ) उन विषयों को (प्रपद्य) उपकारी समझ कर मैंने (तत्त्वतः) वास्तव में (मां) आत्मा को ( अहं इति ) मैं ही आत्मा हूँ, इस रूप से (न वेद) नहीं जाना - अर्थात् उस समय शरीर को ही आत्मा समझने के कारण मुझे आत्मा के यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान नहीं हुआ।
From infinite time past, not realizing the true nature of the soul, I have fallen into excessive indulgence in sense objects; believing such indulgence to be beneficial, I have not been able to fathom that 'I am the soul'.
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