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Samadhitantram
रक्ते वस्त्रे यथाऽऽत्मानं न रक्तं मन्यते तथा । रक्ते स्वदेहेऽप्यात्मानं न नष्टं मन्यते बुधः ॥६६॥
अन्वयार्थ - (यथा ) जिस प्रकार कोई (वस्त्रे रक्ते) पहना हुआ वस्त्र लाल होने पर ( आत्मानं ) अपने को अपने शरीर को (रक्तं) लाल हुआ (न मन्यते) नहीं मानता है (तथा) उसी प्रकार (स्वदेहेऽपि रक्ते) अपने शरीर के भी लाल होने पर (बुधः ) बुद्धिमान पुरुष अन्तरात्मा ज्ञानी ( आत्मानं ) अपने जीवात्मा को (रक्तं न मन्यते ) लाल हुआ नहीं मानता है।
Just as on wearing red dress one does not consider the body to be red, in the same way, on seeing red colour of his body, the knowledgeable introverted-soul (antarātmā) does not consider the soul to be red.
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