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Verse 88
जातिदेहाश्रिता दृष्टा देह एवात्मनो भवः । न मुच्यन्ते भवात्तस्मात्ते ये जातिकृताग्रहाः ॥८८॥
अन्वयार्थ - (जातिः) ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जातियाँ (देहाश्रिता दृष्टा) शरीर के आश्रित देखी गयी हैं (देह एव) और शरीर ही (आत्मनः) आत्मा का (भवः) संसार यानी बन्धन है (तस्मात् ) इसलिए (ये जातिकृताग्रहाः) जिन्हें जाति का ही आग्रह है - अमुक जाति से ही मुक्ति है ऐसा हठ है (ते) वे पुरुष ( भवात् ) संसार से (न मुच्यन्ते ) मुक्त नहीं होते हैं।
Castes (brāhmana, ksatriya) are body-dependent. Acquisition of the body is the wandering of the soul in the world. Therefore, those who insist only on caste do not attain liberation.
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