________________
Samādhitaitram
यत्त्यागाय निवर्तन्ते भोगेभ्यो यदवाप्तये । प्रीतिं तत्रैव कुर्वन्ति द्वेषमन्यत्र मोहिनः ॥१०॥
अन्वयार्थ - ( यत् त्यागाय) जिस शरीर के त्याग के लिये - उससे ममत्व दूर करने के लिये - और ( यत् अवाप्तये) जिस परम वीतराग पद को प्राप्त करने के लिये ( भोगेभ्यः) इन्द्रियों के भोगों से (निवर्तन्ते) निवृत्त होते हैं अर्थात् उनका त्याग करते हैं (तत्रैव) उसी शरीर और इन्द्रियों के विषयों में ( मोहिनः) मोही जीव (प्रीतिं) प्रीति और ( अन्यत्र ) वीतरागता आदि के साधनों में (द्वेषं कुर्वन्ति ) द्वेष करते हैं।
Sensual pleasures are abandoned for getting rid of infatuation for the body, and as a means to acquire the supreme status. Those taken over by delusion, in contrast, exhibit infatuation for the body, and aversion for the means to acquire the supreme status.
........................
130