________________
Verse 51
यत्पश्यामीन्द्रियैस्तन्मे नास्ति यन्नियतेन्द्रियः । अन्तः पश्यामि सानन्दं तदस्तु ज्योतिरुत्तमम् ॥५१॥
अन्वयार्थ - अन्तरात्मा को विचारना चाहिये कि - ( यत् ) जो कुछ – शरीर आदि बाह्य पदार्थ (इन्द्रियैः) इन्द्रियों के द्वारा (पश्यामि ) मैं देखता हूँ - अनुभव करता हूँ (तत्) वह (मे) मेरा स्वरूप (नास्ति) नहीं है, किन्तु (नियतेन्द्रियः) इन्द्रियों को बाह्य विषयों से रोककर स्वाधीन करता हुआ ( यत्) जिस (उत्तम) उत्कृष्ट अतीन्द्रिय (सानन्दं ज्योतिः) आनन्दमय ज्ञानप्रकाश को (अन्तः) अन्तरंग में (पश्यामि ) मैं देखता हूँ - अनुभव करता हूँ (तत्) वही ( अस्तु) मेरा वास्तविक स्वरूप है।
(The introverted-soul (antarātmā) should contemplate thus -) External objects – the body etc. – that my senses see and feel do not constitute my nature; overpowering the senses, the supreme, blissful light of knowledge that I see and feel in my being is my true nature.
........................
75