Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 18
________________ में न तो अन्धश्रद्धा है और न ही विवेक शून्यता या असंबद्धता का अवकाश । वैसे ही दूसरी लेखिका सीबल लीक अपनी पुस्तक 'रीइनकारनेशन ध सेंकड चान्स' में लिखती है कि अज्ञान के कारण हम कर्मों का या कर्मबन्धनों का अस्वीकार कर सकते हैं, परन्तु कर्म हमारा अस्वीकार करता नहीं है, वह तो आपको चिपक ही जाता है । प्रवेशबंद का बोर्ड लगा हुआ हो और आपने इधर-उधर चौराहे पर नजर घुमाई पुलिस दिखाई न दी..... आप निश्चिंत होकर अपनी मारूति वेन पार्क कर देते हैं.... मगर आप जैसे ही अपना काम पूर्ण कर आते हैं, खाकी वर्दी पहने पुलिस को तैयार पाते हैं, चूँकि (We can ignore the policeman but he won't ignore us) अर्थात् हम सोच सकते हैं कि पुलिसमेन हमें नहीं देख रहा है, मगर पुलिसमेन की चौकन्नी नजर हमारे ऊपर रहती ही है, उसी तरह यहाँ पर भी कर्म-मामा तैयार है। आत्मा द्वारा कर्मग्रहण प्रक्रिया - विश्व की समस्त विषमताओं का वैश्विक कारण कर्म है। ऐसा कई दर्शनकारों ने भी स्वीकार किया है.....फिर भी एक जैन दर्शन में ही उसका अत्यन्त विस्तारपूर्वक सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है। दूसरे दर्शनकारों ने तो सिर्फ इतना ही कहा है - कर्म यानि क्रिया । परन्तु यदि कर्म का अर्थ सिर्फ क्रिया ही होता, तो फिर अमुक समय में जब क्रिया नष्ट हो जाती है, तब कालान्तर में उसका फल कैसे मिलता है ? खाया आज और क्या दस दिन के बाद पेट भरता है..... तृप्ति होती है..... ? असंभव ! रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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