Book Title: Re Karm Teri Gati Nyari
Author(s): Gunratnasuri
Publisher: Jingun Aradhak Trust

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Page 71
________________ सत्ताईस दिनों का हमारा पचक्खाण हो जाता है...इस तरह यह पच्चक्खाण Very Simple एकदम सरल है। हर व्यक्ति कर सकता है। So Simple and So Great सरल है, फिर भी महत्वपूर्ण हैं! आज से ही आजमा कर देख लीजिये....बड़ा ही आनंद आयेगा। 6. नामकर्म आत्मा का छठ्ठा गुण है अरूपिपना। नामकर्म उस गुण को ढक देता है और जीव को रूपी शरीर पकड़ा देता है। इस कर्म को चित्रकार (Painter-Artist) की उपमा दी गई है। जैसे चित्रकार विभिन्न आकृति वाले चित्र बनाता है। पिकासो अपने ही ढंग के चित्र बनाते है तो Rembrandt अपने ही किस्म के.....कभी वे चित्र Mona Lisa जैसे मोहक होते हैं तो कभी इतने बिभत्स मानो दुनिया की सारी बिभित्सता एक Capsule में उलेच दी गई है। ___ उसी तरह यह नामकर्म की ही करामत है कि किसी की आकृति नीग्रो-सी तो किसी की आकृति चीना जैसी ! (झीणी आँखें और नाक चपटी) रशियन....अमेरिकन...रेड इंडियन....आफ्रिकन... जापनीज.....नेपाली....इंडियन....सभी की आकृतियाँ व रंग अलग-थलग ! भारत में भी आंध्र के लोग....पंजाब के....गुजरात के.....राजस्थान के....सभी अलग-अलग। इन सभी का म्यूझियम देखना हो तो सीमा पर तैनात सेना में हो आइये.... यह सब नामकर्म की ही करामत है...और किसी को वोइस ऑफ लता मिलती है, तो कोई मोहम्मद रफी, कोई माइकल जेक्सन तो कोई जेकीचेन बनता है, यह भी नामकर्म की ही बदौलत है। सुस्वरदुस्वर, यश-अपयश, सौभाग्य-दुर्भाग्य, त्रस-स्थावरपना आदि सभी नामकर्म के आधीन है। अब तो हद हो गई ! नामकर्म की बातों को नहीं जानने वाली कर्मसत्ता से मिले त्वचा के रंग को रे कर्म तेरी गति न्यारी...!! / 70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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